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चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प
[ भाग 7
घर-देरासर-गुजरात के अन्य भागों में भी बनाये गये। पाटन एक महत्त्वपूर्ण नगर है जहाँ जैनों की संख्या पर्याप्त है। मणियाटी पाडी में श्री-लल्लूभाई दन्ती का घर-देरासर और कुंभरिया पाडा में श्री-ऋषभदेवस्वामी-देरासर यहाँ के महत्त्वपूर्ण गृह-मंदिर हैं। गुजरात के पालीताना, रल्हणपुर, खंभात आदि नगरों में भी ऐसे उदाहरण हैं । राष्ट्रीय संग्रहालय, नयी दिल्ली में किसी गृहमंदिर का एक सूक्ष्म शिल्पांकन सहित मण्डप (प्रविष्टि क्रमांक ६०.१४८) है, इसका निर्माण अवश्य ही या तो बड़ौदा में हुअा होगा या उसके आसपास ; क्योंकि उसके शिल्पांकन पर मराठा-प्रभाव स्पष्ट है जो विशेषतः चारों कोनों पर प्रस्तुत गजारोहियों की गोल पगड़ी (चित्र २८६ और २८७) से प्रमाणित होता है। अन्य मण्डपों की भाँति यह भी कई काष्ठ-फलकों को जोड़कर बनाया गया है। मुख्य धरनों के चार अन्य पार्यों में से दो पर तीर्थंकरों की सात आसीन मूर्तियाँ (चित्र २८६) उत्कीर्ण हैं । छिद्र-सहित जाली और अर्धवृत्ताकार देवकुलिका से मुस्लिम प्रभाव प्रकट होता है । गज पर झूला और हौदा सुसज्जित हैं । गज को घण्टा, शिरस्त्राण, गलहार और नूपुर पहनाये गये हैं और उसके शिल्पांकन से स्वाभाविकता का वातावरण बनता है ।
इस अष्टकोणीय मण्डप की छत से आबू के प्रसिद्ध मंदिरों (चित्र २८८) का स्मरण हो आता है। सोलह अप्सराएं स्तूपी के अंतर्भाग की शोभा बढ़ा रही हैं। उसके मध्य में पुष्पावली से अलंकृत लोलक लटक रहा है। स्तूपी के सबसे नीचे की धरन पर पूरी लंबाई में जन-समूह का अंकन है जिसके अंतिम सिरे पर एक तीर्थंकर-सहित मंदिर की अनुकृति (चित्र २८६) उत्कीर्ण है। जनसमूह से तत्कालीन सामाजिक जीवन की एक झाँकी मिलती है। अप्सराओं, अन्य मूर्तियों और प्रारोहियों-सहित गजों से इस मण्डप का निर्माण-काल सोलहवीं-सत्रहवीं शती और निर्माण-स्थल बड़ौदा के आस-पास ज्ञात होता है । राष्ट्रीय संग्रहालय में द्वार की एक चौखट भी उल्लेखनीय जैन काष्ठकृति है (प्रविष्टि क्रमांक ६०.११५३) । उसके ऊपर की पट्टी पर बीच में एक तीर्थंकर-मूर्ति (चित्र २६०) है। दोनों ओर एक-एक चमरधारी और नौ-नौ मालाधारी विद्याधरों की संयोजना से म दृश्य की सृष्टि हुई है। दोनों ओर के एक-एक स्तंभ पर एक-एक चतुर्भुज द्वारपाल और एक-एक स्तंभ पर एक-एक देवकोष्ठिका में तीर्थंकर-मूर्तियाँ हैं जिनके साथ परिचरों की मूर्तियाँ भी अंकित हैं। चौखट के चारों ओर लताओं की पट्टियाँ उत्कीर्ण हैं। प्राकृतियाँ यद्यपि अब क्षत-विक्षत हो गयी हैं तब भी उनसे इस काष्ठ-कृति का समय सत्रहवीं शती और निर्माण-स्थल अहमदाबाद सूचित होता है।
राष्ट्रीय संग्रहालय में एक और काष्ठ-कृति है--एक गह-मंदिर का द्वार ( प्रविष्टि क्रमांक ४७.१११/१; आकार १०० x ६० सेण्टीमीटर) (चित्र २६१) । आकार में लघु होकर भी यह द्वार उतना ही शिल्पांकित है जितना एक बड़ा द्वार होता है। दोनों कपाटों पर छोटे-बड़े वर्गाकारों में सुंदर पुष्पावली आदि के अंकन हैं। सरदल पर चौदह स्वप्नों का आलेखन है (चित्र २६२) जो जैन शिल्पांकनों में विशेष महत्त्व का माना जाता है। सरदल के नीचे लक्ष्मी की एक चतुर्भुजी मुर्ति है जिसके दोनों ओर एक-एक चमरधारिणी है। नीचे के फलक पर दो गज और उसके दोनों
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