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अध्याय 33 ]
अभिलेखीय सामग्री शासकीय संग्रहालय, मद्रास में प्रदर्शित हैं। दो स्तंभ और एक जल-प्रणालिका और कुछ निषीधिका के शिलाखण्ड अभिलिखित हैं। राष्ट्रकूट राजा इंद्र-तृतीय के शासनकाल के अभिलेखों में से एक में वृत्तांत है कि उस राजा ने शांतिनाथ के प्रक्षाल के लिए एक जल-प्रणालिका बनवायी। इस जलप्रणालिका के बाहरी किनारे पर एक पंक्ति में मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं जिनमें गतिमान् मनुष्यों और पशुओं की सुंदर प्रस्तुति प्रभावित करती है, वे किसी तत्कालीन घटना से संबद्ध हैं।
करीमनगर जिले के कुरिक्यल नामक स्थान से दसवीं शती के लगभग मध्य की, राष्ट्रकटों के वेमुलवाडु चालुक्य सामंतों के समय की कुछ जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। उनमें से एक आदिनाथ की शासनदेवी यक्षी चक्रेश्वरी की है । इस मूर्ति के नीचे प्रसिद्ध कन्नड़ कवि पम्प (लगभग ६५० ई०) के भ्राता जिनवल्लभ का अभिलेख है जिसमें लिखा है कि इन मूर्तियों का निर्माण इन्हीं जिनवल्लभ (चित्र ३०२) ने कराया था।
पूर्वी चालुक्य अम्म-द्वितीय के शासनकाल में जैन मंदिरों के निर्माण में विशेष प्रगति हुई । धर्मवरम् में दुर्गराज ने इसी काल में कटकाभरण-जिनालय नामक एक जैन मंदिर बनवाया और उसमें पूजा चलती रखने के लिए उसने एक ग्राम का दान किया । यह वृत्तांत एक कांस्य-पट्टी-अभिलेख में आया है। इस राजा के शासनकाल की एक अन्य दान-संबंधी कांस्य-पट्टी में उल्लेख है कि विजयवाड़ा के दो जैन मंदिरों के लिए कुछ दान किया गया था। इस राजा के शासनकाल में एक महिला के प्रयत्नों से सर्वलोकाश्रय-जिन-भवन नामक जैन मंदिर का निर्माण हुआ था। महबूबनगर जिले के उज्जल में एक अभिलेख है जिसमें लिखा है कि उज्जिलि के किले में स्थित बड्डी-जिनालय के चेन्न-पार्श्वदेव को दान किये गये। कदाचित् ईंटों से बना यह मंदिर वही है जिसका उपयोग अब वीर शैवों द्वारा किया जा रहा है।'
विजयनगर साम्राज्य के इतिहास के प्रारंभिक काल में जैन धर्म लोकप्रिय था। इस समय तीर्थंकरों के बहुत से जैन मंदिरों और सुंदर मान-स्तंभों का निर्माण हुआ। इस साम्राज्य की राजधानी हम्पी (प्राचीन विजयनगर) में ही कुछ जैन मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर वही हो सकता है जिसका उल्लेख शक संवत् १२८६ (१३६७ ई.) के बुक्क-प्रथम के राज्यकाल के एक अभिलेख में
1 वही, 1905, क्रमांक 331. 2 प्रबुद्ध कर्णाटक (कन्नड़ भाषा में), 53,43; 73.83. 3 एनुअल रिपोर्ट प्रॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी, 1906-1607, कांस्य-पट्टी 7. 4 वही, 1908-1909, कांस्य-पट्टी 8./एपिमाफिया इण्डिका, 24; 1937-38; 1 268. 5 एपिनाफिया इण्डिका, 7. 1902-1903. पृ 177. 6 तेलंगाना इंस्क्रिप्शंस, हैदराबाद, 2. क्रमांक 35. 7 गोपालकृष्णमूर्ति, वही, पृ 61. 8 एनुमल रिपोर्ट मॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी, 1918. पृ. 66.
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