Book Title: Jain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Author(s): Uditprabhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 9
________________ समर्पण. परम श्रद्धेया महायोगेश्वरी गुरुवर्या श्री उमरावकुँवर जी म. सा. 'अर्चना' आध्यात्मपथ की परम साधिका है, योग की शब्दावली में कहा जा सकता है गंगा-यमुना के पार शुन्य घाट पर जाना है, दिव्य झरने का अमृत पाना है, उनके जीवन का लक्ष्य है। मैंने सिर्फ ध्यान साधना के विषय में जो लिखा है उन्होंने अनुभूत किया है। श्री चरण साधना कमल पर मण्डराते ज्ञान-भ्रमर, दर्शन सी महक और चारित्र की आभा ने मेरे सन्तप्त मन को बदली का अहसास कराया, जिन्होंने मेरे जीवन की दशा और दिशा बदली उन्हीं गुरुवर्या श्री के कर-कमलों में सादर, सविनय, सभक्ति सर्वात्मना समर्पित यह लघु प्रयास " Jain Education International त्वदीयं वस्तु योगीन्द्र ! तुभ्यमेव समर्पये!! विनित : • आर्या डॉ. उदित प्रभा 'उषा' For Private Personal Use Only www.jainaprary.org

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