Book Title: Jain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Author(s): Uditprabhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 8
________________ हार्दिक आशीर्वचन....... ज्ञान चक्षु जब खुलते हैं। सद् साहित्य के पुष्प खिलते है ॥ ध्यान का का जैन दर्शन में विशेष महत्त्व है, यह हमें बाह्य संसार के ऊहापोह से दूर शांत मन से जोड़ता है। तब ऐसा प्रतीत होता है विकार समाप्त हो गए है और एक नयी ऊर्जा हमारे स्पन्दनों में आकर बस जाती है। ___ ध्यान जीवन की ऐसी उत्कृष्ट साधना है, जिसके द्वारा साधक लोकोत्तर आलोक से आप्लावित हो जाता है। मेरी अन्तेवासिनी शिष्या डॉ. उदित प्रभा 'उषा' को लेखन, मनन और शोध में विशिष्ट अभिरूचि रही है। उनकी लेखनी से निसृतः लगभग आठ रचनायें प्रेरणादीप बनकर जिज्ञासु धर्मोन्मुख श्रावक-श्राविकाओं का पथ प्रशस्त कर रही है । उनके अनवरत कई वर्षों के शोध का प्रतिफल है-"जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम।" - इस शोध ग्रन्थ पर उन्हें लाडनूं संस्थान द्वारा विद्या वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया। यह गौरव का विषय है। प्रस्तुत शोधग्रन्थ के नौ अध्यायों में भारतीय संस्कृति और वाङ्मय में ध्यान साधना का विस्तृत वर्णन है । शोधार्थी साध्वी जी ने जैनागमों एवं परवर्ती आचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया है। सुधी पाठक इस ग्रन्थ के माध्यम से द्वन्द्व से मुक्त होकर एकाग्रचित होकर अपना कल्याण कर सकते है | इससे उनकी संकल्प शक्ति का विकास होगा एवं विजातीय तत्त्व पलायन करेंगे। मैं साध्वी डॉ. उदित प्रभा 'उषा' को इस ग्रन्थ प्रणयन के लिए साधुवाद देते हुए शोध प्रक्रिया को जारी रखने का आह्वान भी करती हूँ। - आर्या उमराव कुंवर "अर्चना" ब्यावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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