Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 6
________________ जैनाचार्यों की दृष्टि में नारी चरित्र का विकृत पक्ष जैनाचार्यों ने नारी - चरित्र का गम्भीर विश्लेषण किया है। नारी स्वभाव का चित्रण करते हुए सर्वप्रथम जैनागमग्रन्थ तन्दुलवैचारिक प्रकणक में नारी की स्वभावगत निम्न 94 विशेषतायें वर्णित हैं - ' नारी स्वभाव से विषम, मधुर वचन की वल्लरी, कपट - प्रेम रूपी पर्वत, सहस्त्रों अपराधों का घर, शोक की उद्गमस्थली, पुरूष के बल के विनाश का कारण, पुरूषों की वधस्थली अर्थात् उनकी हत्या का कारण, लज्जा - नाशिका, अशिष्टता का पुन्ज, कपट का घर, शत्रुता की खान, शोक की ढेर, मर्यादा की नाशिका, कामराग की आश्रयस्थली, दुराचरणों का आवास, सम्मोह की जननी, ज्ञान का स्खलन कराने वाली, शील को विचलित करने वाली, धर्मयोग में बाधा रूप, मोक्षपथ साधकों की शत्रु, ब्रह्मचर्यादि आचार मार्ग का अनुसरण करने वालों के लिए दूषण रूप, कामी की वाटिका, मोक्षपथ की अर्गला, दरिद्रता का घर, विषधर सर्प की भाँति कुपित होने वाली, मदमत्त हाथी की भाँति कामविह्वला, व्याघ्री की भाँति दुष्ट हृदय वाली, ढंके हुए कूप की भाँति अप्रकाशित हृदय वाली, मायावी की भाँति मधुर वचन बोलकर स्वपाश में आबद्ध करने वाली, आचार्य की वाणी के समान अनेक पुरूषों द्वारा एक साथ ग्राह्य, शुष्क कण्डे की अग्नि की भाँति पुरुषों के अन्तःकरण में ज्वाला प्रज्वलित करने वाली, विषम पर्वतमार्ग की भाँति असमतल अन्त:करण वाली, अर्न्तदूषित घाव की भाँति दुर्गन्धित हृदय वाली, कृष्ण सर्प की तरह अविश्वासनीय, संहार (भैरव) के समान मायावी, सन्ध्या की लालिमा की भाँति क्षणिक प्रेम वाली, समुद्र की लहरों की भाँति चंचल स्वभाव वाली, मछलियों की भाँति दुष्परिवर्तनीय स्वभाव वाली, बन्दरों के समान चपल स्वभाव वाली, मृत्यु की भाँति निर्विरोष, काल के समान दयाहीन, वरूण के समान पाशयुक्त अर्थात् पुरूषों को कामपाश में बाँधने वाली, जल के समान अधोगामिनी, कृपण के समान रिक्त हस्त वाली, नरक के समान दारुणत्रासदायका, गर्दभ के सदृश दुष्टाचार वाली, कुलक्षणयुक्त घोड़े के समान लज्जारहित व्यवहार वाली, बाल स्वभाव के समान चंचल अनुराग वाली, अन्धकारवत् दुष्प्रवेश्य, विष - बेल की भाँति संसर्ग वर्जित, भयंकर मकर आदि से युक्त खाप के समान दुष्प्रवेश्य, साधुजनों की प्रशंसा के अयोग्य, विष - वृक्ष के फल की तरह प्रारंभ में मधुर किन्तु दारूण अन्त वाली, खाली मुट्ठी से जिस प्रकार बालकों को भाया जाता हैं उसी प्रकार पुरूषों को लुभाने वाली, जिस प्रकार एक पक्षी के द्वारा मांस Jain Education International जैन धर्म में नारी की भूमिका :5 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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