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पृ. 618-621 (तथा) इत्थीसु ण पावया भणिया --सूत्र प्राभृत, पृ. 24-26
एवं णवि सिज्जइ वत्थभरो जिणयासणे होइ तित्थयरो।
--वही, 23 39. इस सम्बन्ध में दिगम्बर पक्ष की विस्तृत चर्चा के लिए देखें --जैनेन्द्र सिद्धान्त
कोष, भाग 3, पृ. 596-598 एवं श्वेताम्बर पक्ष के लिए देखें --अभिधान
राजेन्द्र कोष, भाग 2, पृ. 618-621 40. इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा के लिए देखें --यापनीय सम्प्रदाय, प्रो. सागरमल
जैन।
41. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2 42. (क). बृहत्कल्पभाष्य, भाग 3, 2411; 2407, (ख). बृहत्कल्पभाष्य
भाग4, 4339
(ग). व्यवहारसूत्र 5/1-16 43. जस्सणं अहं पुत्ता! रायस्स वाजुवरायस्स वाभारियत्ताए सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुमं सुहिया वा दुक्खिया वा भविज्जासि।।
--ज्ञाताधर्मकथा 16/85 44. तएणंसारेवई गाहावइणी तेहिंगोणमंसेहिं साल्लेहिंय 4 सुरंच आसाएमाणो 4 विहरइ।
--उवासगदसाओ 244 तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील जाव भावमाणस्स चोइस संवच्छरा वइक्कंता। एवं तहेव जेठं पुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जिता णं विहरइ।
--उवासगदसाओ, 245 45. अपुत्रस्य गति स्ति। 46. जइणं अहं दारगं वा पयायामि तो णं अहं जायं य जाव अणुवुड्ढेमित्ति।
_ -- ज्ञाताधर्मकथा, 1, 2, 16, 47. न तस्स दुक्खं विभयंति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा।
एक्को सयं पच्चणु होइ दुक्स, कत्तारमेवं अणुजाइ कम्मं ।।
जैन धर्म में नारी की भूमिका :46
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