Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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68. अणगसेणा पामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं । आवश्यकचूर्ण भाग 1, पृ. 356
69. आदिपुराण, पृ. 125, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1919
70. अड्ढा जावामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा ईसर सेणावच्चं कारेमा " । 71. देखें, जैन, बौद्ध और गीता का आचार दर्शन, भाग 2, डॉ सागरमल जैन,
7.268 'असईजणपोसणया
72.
73. साविका जाया अबंभस्स पच्चक्खाइ णण्णत्य रायाभियोगेणं ।
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- उपासकदशा 1/51
74. जैनशिलालेख संग्रह भाग 2 अभिलेख क्रमांक 8 75. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति - शान्तिसूरीय वृत्ति, अधिकार 2, 30
76. ज्ञाताधर्मकथा 4/6
-- आवश्यकचूर्णि, भाग 1, पृ. 554-55
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77. तम्हा उ वज्जए इत्थी आघाते ण सेवि णिग्गंथे ।
78. कप्पइ निग्गंथीणं विइकिट्ठाए काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथ निस्साए । (तथा) पंचवासपरियाए समणे निम्गंथे, सट्ठिवास परियाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दिसित्ताए ।
-- व्यवहारसूत्र 7, 15 व 20 79. इस समस्त चर्चा के लिए देखें मेरे निर्देशन में रचित और मेरे द्वारा सम्पादित ग्रन्थ - जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ - डॉ. अरूण प्रताप सिंह ।
जैन धर्म में नारी की भूमिका : 48
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