Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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31. चातुमास सूचा, पृ. 77 प्र. अ. भा. समग्र जैन चातुर्मास सूचि प्रकशन परिषद
बम्बई 1987 ।
32. इत्थी पुरिससिद्धा य, तहेव य नपुसंगा । सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य ॥
33. ज्ञाताधर्मकथा - मल्लि और द्रोपदी अयययन । 34. (अ) तथेव हत्थिखंधवरगताए केवलनाणं, सिद्धाए इमामे ओसप्पिणीए पद्मसिद्धो मरूदेवा । एवं आराहणं प्रतियोगसंगहो कायव्वो ।
- आ. चूर्णिभाग 2 पृष्ठ 212
द्रष्टव्य, वही भाग, 1, पृ. 181 व 488 ।
(ब) अन्तकृद्दशा के वर्ग 5 में 10, वर्ग 7 में 13, वर्ग 8 में 10 | इस प्रकार कल 33 मुक्त नारियों का उल्लेख प्राप्त होता हैं ।
35. (अ) मणुस्सिणीसु मिच्छाइट्ठि सासणसम्माइट्टि - ट्ठाणे सिया पज्जत्ति - याओ सिया अपज्जत्तियाओसंजदासंजदसंजदट्ठाणे णियमा पज्जत्तियाआ ।
(ब) एवं विधाणचरियं चरियं जे साधवो य अज्जावो । ते जंगपुज्जं कितिं सुहं च लद्धूण सिज्झति ॥
उत्तराध्ययन सूत्र 36, 50
- षट्खण्डागम, 1, 192-93
36. लिंग इत्थीण हवदि भुंजइ सुएयकालम्मि | अज्जिय वि एकवत्था वत्थावरणेण भुंजेइ ॥ वि सिज्झ वत्थधरो जिणसासणे जडवि होइ तित्थयरो । गो विमोक्खमग्गो सेसा उमग्गया सब्वे ॥
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जैन धर्म में नारी की भूमिका : 45
(तथा) सुणहात गद्दहाण य गोपसुमहिलाणं दीसदे मोक्खो । जे सोधति चउत्थं पिच्छिज्जंता जणेहि सव्वेहिं ।
- मूलाचार 4। 196
- शीलप्रभृत 29
37. Aspects of jainology Vo.. 2; Pt. Bechardas Doshi Commeinoration Vol. page 150-110.38. इस सम्बन्ध में श्वेतांबर दृष्टिकोण के लिए देखिए - अभिधान राजेन्द्र भाग - 2,
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- सूत्रप्राभृत, 22, 23
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