Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 44
________________ 13. एवं पिता वदित्तावि अदुवा कम्मुणा अवकरेंति। - सूत्रकृतांग, 1/4/23 14. दुग्रहियं हृदयं यथैव वदनं यदर्पणान्तर्गतम्, भाव: पर्वतमार्गदुर्गविषमः स्त्रीणां प विज्ञायते॥ - सूत्रकृतांग विवरण 1/4/23, प्र. सेठ छगनलाल, [था बंगलोर 1930 15. सुट्ठवि जियासु सुट्ठवि पियासु सुट्ठवि लद्धपरासु। अडईसु महिलियासु य वीसंभो नेव कायव्यो। उब्भेउ अंगुली सो पुरिसो सयलंमि जीवलोयम्मि। कामं तएण नारी जेण न पत्ताई दुक्खाई॥ -वही, विवरण 1/4/23 16. वही, 1/4/2 17. एए चेव य दोसा पुरिससमाये वि इत्थियाणं पि। -सूत्रकृतांगनियुक्ति गाथा 61 18. भागवती आराधना गाथा 987-88 व 995-96 19. वही गाथा, 989-94 20. तए णं से कण्हे द्रासुदेव ण्हाए जाव विभूसिए देवईए देवीए पासवंदाये हव्बमागच्छइ॥ -अन्तेदशा सूत्र 18 21. नो खुल मे कप्पइ अम्मापितीहिं जीवंतेही मुण्डे भवित्ता अगारवासाओ अणगारियं पव्वइए॥ -कल्पसूत्र 91 (एवं) गम्भत्थो चेव अभिग्गहे गेण्हति णाहं समणे होक्खामि जाव एताणि एत्थ जीवंति त्ति। ____ -आवश्यकचूर्णिप्रथम भाग, पृ. 242, पृ. ऋषभदेव जी केशरीमल श्वेताम्बर सं. रतलाम 1928 22. तए णं मल्ली अरहाकेवलनाणदंसणे समुप्पने । -ज्ञाताधर्म कथा 8/186 23. अज्जा वि बंभि-सुन्दरी-राइमई चन्दणा पमुक्खाओ। कालतए वि जाओ ताओ य नमामि भावेणं ॥ - ऋषिमण्डलस्तव 208 जैन धर्म में नारी की भूमिका :43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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