Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

Previous | Next

Page 4
________________ सन्दर्भ उपलब्ध है, वे सब जैन आचायों द्वारा अनुशासित थे, यह मान लेना भी भ्रात धारणा होगी। जैन आचार्यों ने अनेक ऐसे तथ्यों को भी प्रस्तुत किया है, जो यद्यपि उस युग में प्रचलित रहे हैं, किन्तु वे जैन धर्म की धर्मिक मान्यताओं के विरोधी हैं। उदाहरण के रूप में बहु-विवाह प्रथा, वेश्यावृत्ति, सतीप्रथा, स्त्री के द्वारा गोमांस एवं मद्यपान आदि के उल्लेख हमें आगमों एवं आगमिक व्याख्या साहित्य में उपलब्ध होते हैं, किन्तु वे जैनधर्मसम्मत थे, यह नही कहा जा सकता। वस्तुत: इस साहित्य में लौकिक एवं धार्मिक दोनों ही प्रकार के सन्दर्भ हैं, जिन्हें अलग-अलग रूपों में समझना आवश्यक ह। . अत: नारी के सम्बन्ध में जो विवरण हमें आगमों और आगमिक व्याख्या साहित्य में उपलब्ध होते हैं, उन्हें विभिन्न काल खण्डों में विभाजित करके और उनके परम्परासम्मत और लौकिक स्वरूप का विश्लेषण करके ही विचार करना होगा। तथापि उनके गम्भीर विश्लेषण से हमें जैनधर्म में और भारतीय समाज में विभिन्न कालों में नारी की क्या स्थिति थी, इसका एक ऐतिहासिक परिचय प्राप्त हो जाता है। नारी लक्षण नारी की सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति की चर्चा के पूर्व हमें यह भी विचार कर लेना है कि आगमिक व्याख्याकारों की दृष्टि में नारी शब्द का तात्पर्य क्या रहा है। सर्वप्रथम सूत्रकृतांग नियुक्ति और चूर्णि में नारी शब्द के तात्पर्य को स्पष्ट किया गया है। स्त्री को द्रव्य-स्त्री और भावस्त्री ऐसे दो विभागों में वर्गीकृत किया गया है। द्रव्यस्त्री से जैनाचार्यों का तात्पर्य स्त्री की शारीरिक संरचना (शारीरिक चिन्ह) से है, जबकि भाव-स्त्री का तात्पर्य नारी स्वभाव (वेद) से है। आगम और आगमिक व्याख्याओं दोनों में ही स्त्री-पुरूष के वर्गीकरण का आधार लिंग और वेद माने जाते रहे हैं। जैन परम्परा में स्त्री की शारीरिक संरचना को लिंग कहा गया हैं । रोमरहित मुख, स्तन, योनि, गर्भाशय,आदि से युक्त शारीरिक संरचना स्त्रीलिंग हैं, यही द्रव्य-स्त्री है, जबकि पुरूष के साथ सहवास की कामना को अर्थात् स्त्रीयोचित् काम-वासना को वेद कहा गया है। वही वासना की वृत्ति भाव-स्त्री है। जैन आगमिक व्याख्या साहित्य में स्त्री की काम-वासना के स्वरूप को चित्रित करते हुए उसे उपलअग्निवत् बताया गया ह। जिस प्रकार उपलअग्नि के प्रज्वलित होने में समय लगता है किन्तु प्रज्वलित होने पर चालना करने पर बढती जाती है. अधिक काल तक स्थायी रहती है उसी प्रकार स्त्री की कामवासना जागत जैन धर्म में नारी की भूमिका :3 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 50