Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 39
________________ अध्ययन का भी वर्जित मान लिया गया, यद्यपि प्राचीन आगम-साहित्य में स्त्रियों के अंग आगम के अध्ययन के उल्लेख एवं निर्देश उपलब्ध है। यह सत्य है कि इस सम्बन्ध में जैनधर्म ने हिन्दूधर्म का अनुसरण ही किया। बृहत्तर हिन्दू समाज का एक अंग बने रहने के कारण जैनों के सामाजिक जीवन में स्त्रियों की स्थिति हिन्दूधर्म के समान ही रही है, फिर भी जैनधर्म की सामाजिक व्यवस्था में हिन्दूधर्म की भाँति बहुपत्नीप्रथा इतनी अधिक हावी नहीं हुई कि पुरूष की दृष्टि में स्त्री मात्र भोग्या बनकर रह गयी हो। इसके पीछे जैनधर्म का सन्यासमार्गीय दृष्टिकोण ही प्रमुख रहा है। दूसरे जैनधर्म में प्रारम्भ से लेकर आज तक भिक्षुणीसंघ की, जो एक सुदृढ़ व्यवस्था रही है, उसके कारण उसमें नारी विशेषरूप से विधवा, परित्यक्ता और कुमारियाँ पुरूष के अत्याचार और उत्पीड़न का शिकार नहीं बनी। जैनधर्म का भिक्षुणी संघ ऐसी नारियों के लिए एक शरण-स्थल रहा और उसने उन्हें सम्मानपूर्ण और स्वावलम्बी जीवन जीना सिखाया। यही कारण था कि उसमें सतीप्रथा जैसी वीभत्स प्रथाएँ भी अपने जड़े नही जमा सकी। जैनधर्म में वे स्त्रियाँ जो सामाजिक क्षेत्र में पुरूष के अधीन होकर जीवन जीती थी, भिक्षुणी बनकर पुरूषों के लिए वनदनीय और मार्गदर्शक बन जाती थी। इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से निश्चय ही हम यह कह सकते हैं कि हिन्दूधर्म की तुलना में जैनधर्म में नारी की स्थिति बहुत कुछ सम्मानपूर्ण रही है। (2). बौद्धधर्म और जैनधर्म :- बौद्धधर्म और जैनधर्म दोनों ही श्रवण परम्परा के धर्म रहे हैं और दोनों में भिक्षुणी संस्था की उपस्थिति रही है, फिर भी नारी के प्रति जैनधर्म की अपेक्षा बौद्धधर्म का दृष्टिकोण अधिक अनुदार रहा है। प्रथम तो भबवान् बुद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना के लिए सहमत ही नहीं हुए थे किन्तु जब अपनी क्षीरदायिका मौसी गौतमी और अन्तेवासी आनन्द ने किसी प्रकार अपने प्रभाव का उपयोग करके बुद्ध को सहमत करने का प्रयत्न किया तो बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की स्वीकृति कुछ शर्तों के साथ प्रदान की। जबकि जैनधर्म में महावीर के पूर्व में भी पार्श्व का भिक्षुणी संघ सुव्यवस्थित ढंग से कार्यरत था और महावीर को भी इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का संकोच नहीं हुआ था। इस प्रकार जैनधर्म का भिक्षुणी संघ बौद्धधर्म के भिक्षुणी संघ से पूर्ववर्ती था। पुन: बुद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना के समय ही जिन अष्ट-गुरुधर्मों (अष्ट पुरूषों की श्रेष्ठता सम्बन्धी नियमों) के पालन के लिए स्त्रियों को बाध्य किया, वे स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि बुद्ध की दृष्टि नारियों के प्रति अपेक्षाकृत अनुदार थी। इन अष्ट गुरुधर्मों के अनुसार जैन धर्म में नारी की भूमिका :38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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