Book Title: Jain Dharm me Nari ki Bhumika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 23
________________ के भिक्षुणी बनने पर स्वयं भी भिक्षु बन जाता है । यद्यपि सामाजिक जीवन में विधुरविवाह के अनेक प्रसंग उपलब्ध होते हैं, जिनके संकेत आगमिक व्याख्या साहित्य में मिलते हैं । विवाहेतर यौन सम्बन्ध जैनधर्म में पति-पत्नी के अतिरिक्त अन्यत्र यौन सम्बन्ध स्थापित करना धार्मिक दृष्टि से सदैव ही अनुचित माना गया । वेश्यागमन और परस्त्रीगमन दोनों को अनैतिक कर्म बताया गया । फिर भी न केवल गृहस्थ स्त्री-पुरूषों में अपितु भिक्षु भिक्षुणियों में भी अनैतिक यौन सम्बन्ध स्थापित हो जाते थे, आगमिक व्याख्या साहित्य में ऐसे सैकड़ों प्रसंग उल्लिखित हैं । जैन आगमों और उनकी काओं आदि में ऐसी अनेक स्त्रियों का उल्लेख मिलता है जो अपने साधना-मार्ग से पतित होकर स्वेच्छाचारी बन गयी थीं । ज्ञाताधर्मकथा, उसकी टीका, आवश्यकचूर्णि आदि में पार्वापत्य परम्परा की अनेक शिथिलचारी साध्वियों के उल्लेख मिलते हैं ।" ज्ञाताधर्मकथा में द्रौपदी का पूर्व जीवन भी इसी रूप में वर्णित हैं। साधना काल में वह वेश्या को पाँच पुरूषों से सेवित देखकर स्वयं पाँच पतियों की पत्नी बनने का निदान कर लेतीं है ।" निशीथचूर्णि में पुत्रियों और पुत्रवधू के 1 अथवा धूर्त व्यक्तियों के साथ भागने के उल्लेख हैं । आगमिक व्याख्याओं में मुख्यत: निशीथचूर्णि बृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य आदि में ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं जहाँ स्त्रियाँ अवैध सन्तानों को भिक्षुओं के निवास स्थानों पर " छोड़ जाती थीं । आगम और आगमिक व्याख्यायें इस बात की साक्षी हैं कि स्त्रियाँ सम्भोग के लिए भिक्षुओं का उत्तेजित करती थी" उन्हें इस हेतु विवश करती थी और उनके द्वारा इन्कार किये जाने पर उन्हें बदनाम किये जाने का भय दिखाती थी । आगमिक व्याख्याओं में इन उपरिस्थितियों में भिक्षु को क्या करना चाहिए इस सम्बन्ध में अनेक आपवादिक नियमों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि शीलभंग सम्बन्धी अपराधों के विवश रूपों एवं सम्भावनाओं के उल्लेख जैन परम्परा में विस्तार से मिलते हैं किन्तु इस चर्चा का उद्देश्य साधक को वासना सम्बन्धी अपराधों से विमुख बनाना ही रहा है। यह जीवन का यथार्थ तो था किन्तु जैनाचार्य उसे जीवन का विकृतपक्ष मानते थे और उस आदर्श समाज की कल्पना करते हैं, जहाँ इसका पूर्ण अभाव हो । - Jain Education International जैन धर्म में नारी की भूमिका : 22 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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