Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 4
________________ आय-- निवेदन | प्रति सप्ताह देहली से प्रकाशित होने वाले 'जैन गजट' के यशस्वी और कुशल संपादक, अनेक पुस्तकों के लेवक प्रसिद्ध पंडित इन्द्रलालजी शास्त्रो विद्यालंकार जयपुर के विश्रुत नाम और कार्य को प्रायः सभी जानते हैं । आपने अपनी दूरदर्शिता और अनुभव से पूर्ण एवं परिमार्जित लेवनशैली और प्रवचन प्रणाली से जैन समाज तथा इतर समाज का भी बड़ा भारी हित किमा है । 1 उक्त विद्यालंकार शास्त्रीजी ने जितनी भी पुस्तकें लिखी हैं वे सभी प्रभावक और मननीय हैं । आपने वर्ण व्यवस्था के विवेचन पर भी १०० पृष्ठ की एक पुस्तक निग्वो हैं, जो प्रकाशित हो चुकी है। प्रस्तुत पुस्तक में आपने जाति भेद पर बड़ा सुन्दर विवेचन किया है । मैंने आपके द्वारा लिखित इस पुस्तक को आद्योपांत पढ़कर अपरिचित जनता की जानकारी के लिए इसके प्रकाशनार्थ आपको निवेदन किया तो आपने स्वीकृति देकर मेरी आशा को सफलता दी । इस पुस्तक की चार चार सौ प्रतियां श्रीमान् सेठ भंवर लालजी बाकलीवाल लालगढ़ (बीकानेर) तथा श्रीमान् सेठ भूमरमलजी जयचन्दलालजी कलकत्ता ने सहर्ष लेने का बचन दिया जिससे उत्साह और भी द्विगुणित हो गया । पुस्तक के प्रकाशन के लिए ८०० प्रतियों का खरीद लेना साधारण बात नहीं है । उक्त महानुभावबड़े ही प्रेमी और लोक हित की भावना से ओत प्रोत

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