Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Kulchandravijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ मन्दिर में बरतने की अन्य सावधानियाँ (१) सामायिक पौषध के सिवाय खाली हाथ प्रभु-दर्शन आदि के लिए जाना उचित नहीं है। फल से फल की प्राप्ति होती है। कम से कम, अक्षत एवं घी अवश्य लेकर जायें। (२) मन्दिर में दर्शन-पूजन-वन्दन आदि करते समय पुरुष वर्ग प्रभुजी की दाहिनी तरफ एवं स्त्री वर्ग बायीं तरफ रहे । ठीक सामने खड़े रहने से भी दूसरों को दर्शन आदि में अन्तराय होता है । (३) चैत्यवन्दन, स्तुति आदि मधुर एवं मन्द स्वर से बोलें ताकि दूसरों को साधना में विक्षेप न पड़े। (४) चैत्यवन्दन आदि प्रभुजी से कुछ दूर बैठकर करना चाहिए | इस दूरी को अवग्रह कहते हैं। इसका जधन्य प्रमाण नौ हाथ और उत्कृष्ट साठ हाथ जानें | घरमन्दिर में स्थल के अभाव से जधन्य एक हाथ का रखें । (५) मन्दिर में प्रभुजी को अपनी पीठ न हो, इसका पक्का ख्याल रखें । (६) मन्दिर में विलास, हास्य, कलह, विकथा वगैरह आशातनाओं से बचें । छोटीबड़ी कुल ८४ आशातनाएँ हैं | इन में से नीचे की दस बड़ी आशातनाएँ भयंकर हैं | इनसे अवश्य बचें। दस बड़ी आशातनाएँ मन्दिर में (१) पान-सुपारी खाना, (२) भोजन करना, (३) पानी पीना, (४) थूकना, (५) मल और (६) मूत्र करना, (७) निद्रा करना, (८) स्त्री-सम्भोग करना, (९) जुगार खेलना और (१०) जूते ले जाना, ये दस बड़ी आशातनाएँ हैं । (७) दर्शन, पूजन, वन्दनादि के अन्त में अविधि आशातना के लिए क्षमायाचना रूप 'मिच्छामि दुक्कडं' अवश्य ही बोलें । (८) देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य और साधारण द्रव्य के रक्षण एवं वृद्धि का ध्यान रखें । गुरुवन्दन मन्दिर से लौटकर श्रावक उपाश्रय मे दृढ़ पंचाचार के पालक गुरु भगवन्तों को वन्दन करें । आत्मसाक्षी तथा मन्दिर में किये हुए पच्चक्खाण का फिर से गुरु भगवन्त के पास करें । सुख-शाता पूछे और औषधादि के लिए विनती करें एवं गुरु महाराजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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