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जैन धर्म : सार सन्देश को भली-भाँति न समझ पाया तो ग़लत गुरु के संयोग से भटक जाने की सम्भावना अधिक बनी रहती है। नाथूराम डोंगरीय जैन भी अन्धविश्वास को त्यागकर पहले पूरी सावधानी के साथ गुरु की परख कर लेने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं:
जब हम पैसे की हांडी को भी ठोक बजाकर मोल लेते हैं तो जिस धर्म या देव, गुरु आदि के द्वारा हम संसार-समुद्र से पार होकर सच्चा सुख प्राप्त करना चाहते हैं, उसका अन्धे होकर सहारा लेना, चाहे उससे हानि के बदले लाभ ही क्यों न हो, बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती। इसलिए प्रत्येक समझदार व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह सत्य की कसौटी पर धर्म से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु को कसे, और इसके बाद ही उस पर विश्वास करे।
धर्म के नाम पर लोगों को ठगनेवाले झूठे या नक़ली गुरुओं को संसारी ठगों से अधिक भयानक और विनाशकारी समझना चाहिए, क्योंकि वे अपने शिष्यों को मोक्ष-मार्ग से विमुख कर उनके दुर्लभ मनुष्य-जीवन को ही बरबाद कर डालते हैं। इसलिए गणेशप्रसादजी वर्णी स्पष्ट शब्दों में कहते हैं:
धर्म के नाम पर जगत् ठगाया जाता है। प्रत्यक्षठग से धर्मठग अधिक भयंकर होता है।
जब तक हमें स्वयं सत्य की ठीक-ठीक जानकारी नहीं होती तब तक दूसरों को समझाने की हमारी कोशिश प्रभावरहित और निष्फल ही सिद्ध होती है। जो स्वयं पूरी तरह जानकार नहीं है, उसे दूसरों को समझाने का कोई अधिकार नहीं। उसके लिए ऐसी चेष्टा करना न तो उचित है और न उसकी चेष्टा किसी को लाभ ही पहुँचा सकती है। इसलिए स्वयं सत्य का ज्ञान प्राप्त कर लेने पर ही हमें सच्चे जिज्ञासु या सत्य के खोजी को स्थिति के अनुसार समझाने की कोशिश करनी चाहिए। पर हमें कभी भी किसी के ऊपर अपने विचारों को थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इस सम्बन्ध में नाथूराम डोंगरीय जैन बड़ी ही स्पष्टता के साथ कहते हैं: