________________
374
जैन धर्म: सार सन्देश
86. वही, 5.3, पृ.85 87. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 4.10, पृ.71 88. वही 4.17, पृ.72 में शुभचन्द्राचार्य कहते हैं: "आकाश के पुष्प और गधे के सींग नहीं
होते हैं। कदाचित् किसी देश व काल में इनके होने की प्रतीति हो सकती है, परन्तु
गृहस्थाश्रम में ध्यान की सिद्धि होनी तो किसी देश व काल में संभव नहीं है।" 89. सागरमल जैन, कन्हैयालाल लोढ़ा की जैन धर्म में ध्यान की भूमिका, प्राकृत भारती ___अकादमी, जयपुर, 2007, पृ.37 90. वही, पृ.37-38 91. हीरालाल जैन (संपादक), जैनधर्मामृत, द्वितीय संस्करण, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, ___ वाराणसी, 1965, पृ. 96-97 और समन्तभद्र कृत रत्नकरण्ड श्रावकाचार, हिन्दी ग्रन्थ
कार्यालय, मुम्बई, 2006, श्लोक 33, पृ. 13 92. हीरालाल जैन (संपादक), जैनधर्मामृत, द्वितीय संस्करण, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन,
वाराणसी, 1965, पृ.96 93. समन्तभद्रकृत रत्नकरण्ड श्रावाकाचार, हिन्दी अनुवादक-जयकुमार जलज, हिन्दी ग्रन्थ
कार्यालय मुम्बई, 2006, श्लोक 25 और 26, पृ. 12 94. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 18.11, पृ. 278 95. पतञ्जलि, योगसूत्र 2.46 96. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 18.30-31,33 और 39-40, पृ. 282-284 97. वही, 18.21, पृ. 280 98. आदिपुराण, प्रथम भाग 21.60, 21.67-68 और 21.70-72, पृ. 480-482 99. आचार्य देशभूषण महाराज-अनुवादक और सम्पादक, रत्नाकर शतक, द्वितीय भाग,
श्री स्याद्वाद प्रकाशन मन्दिर, आरा, 1950. पृ.8 100. वही, पृ. 240 101. पद्मसिंह मुनिराज, णाणसार (ज्ञानसार), श्लोक 9, पृ.8 102. गणेशप्रसाद वर्णी, वर्णी-वाणी, प्रथम भाग पञ्चम संस्करण, सम्पादक-नरेन्द्र विद्यार्थी,
वाराणसी, 1968, पृ.94 # 13 103. महापुराण 21.8, देखिए जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 2, पृ.497 104. आदि पुराण, प्रथम भाग 21.81-83 पृ. 483 105. जिनभद्रक्षमाश्रमण, ध्यानशतक, सम्पादक एवं व्याख्याता–कन्हैयालाल लोढ़ा एवं सुषमा
सिंघवी, प्राकृत भारती अकादमी, मुम्बई, 2007, पृ.83-84