Book Title: Jain Dharm Sar Sandesh
Author(s): Kashinath Upadhyay
Publisher: Radhaswami Satsang Byas

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Page 381
________________ 380 जैन धर्म : सार सन्देश उसके चार वर्ष बाद आचार्य महाराज ने उनके चरित्र की निर्मलता को देखकर उन्हें 'ऐलक' पद से दीक्षित किया जो कि श्रावकपद में उत्तम स्थान है। बाद में उन्हें मुनि कुन्थुसागर के नाम से अलंकृत किया। स्व. पूज्य कुन्थुसागर जी महाराज के उपदेश से गुजरात, काठियावाड़, महाराष्ट्र आदि प्रांतों के अनेक राजा बहुत प्रभावित हुए और वे महाराज के अच्छे भक्त बन गये थे। आपका मुनि अवस्था का नाम श्री 108 गणेशकीर्ति महाराज था और आपकी प्रमुख रचनाएँ श्रावक प्रतिक्रमणसार और सुधर्मोपदेशामृतसार हैं। कुन्दकुन्दाचार्यः भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य देव का दिगम्बर जैन परम्परा में सर्वोत्कृष्ट स्थान है। दिगम्बर जैन के धर्मानुयायी शास्त्र-पठन से पूर्व जिस पवित्र श्लोक को मंगलाचरण के रूप में बोलते हैं उससे सिद्ध होता है कि भगवान् श्री महावीर स्वामी और गणधर भगवान श्री गौतम स्वामी के तुरन्त पश्चात्, भगवान कुन्दकुन्दाचार्य का स्थान आता है। भगवान कुन्दकुन्दाचार्य के रचे हुए अनेक शास्त्र हैं जिनमें पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, अष्टपाहुड़, समयसार और नियमसार बहुत प्रसिद्ध हैं। कूमट, रणजीत सिंह : श्री रणजीत सिंह कूमट जी ध्यान से स्वबोध के रचयिता हैं। इस पुस्तक में कूमट जी ने जैन आगम, बुद्ध त्रिपिटिक, पातंजल योग से लेकर आधुनिक चिन्तक जे. कृष्णमूर्ति, निसर्गदत्त जी महाराज आदि के विचारों और स्वयं के वर्षों के अनुभव का मिश्रण समाहित कर इसे एक उपयोगी पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है। गुणभद्राचार्य : गुणभद्राचार्य अपने समय के बड़े विद्वान हुए हैं। आप उत्कृष्ट ज्ञान से युक्त, तपस्वी और भावलिंगी मुनिराज थे। आपने उत्तरपुराण नामक ग्रन्थ की रचना की। आपके गुरु जिनसेन ने अपने अंतिम समय में अपने सबसे योग्य शिष्य गुणभद्राचार्य को बुलाकर अधूरे लिखे महापुराण ग्रन्थ को पूरा करने की आज्ञा दी। जिनसेन, आचार्य : आचार्य जिनसेन एक सिद्धांतज्ञ के साथ-साथ उच्च कोटि के कवि थे। उन्होंने पार्वाभ्युदय काव्य की रचना की जो संस्कृत साहित्य की एक अनुपम और उत्कृष्ट रचनाओं में गिनी जाती है। आचार्य जिनसेन, वीरसेन स्वामी के शिष्य थे। उनकी अन्य रचनाओं में आदिपुराण, वर्धमानपुराण और जयधवला टीका प्रमुख हैं।

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