Book Title: Jain Dharm Prakash 1947 Pustak 063 Ank 05
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 5
________________ RRIO000000mmomen1.HTMan00000000000RRENDRomaneo0050000000000sharamanMARREA 0000000000000000000000000000000000000000000 arometerminomooomment 0 000LOurnamunanam-1000 ॥ पुन्य वानी॥ पुन्य बानी झलकती है, वदन पर देखलो । छीप नहीं सकती, छीपाये देखलो ॥ १ ॥ जाता कहीं वह पुन्यवान, स्थान पाता देखलो । मान और सन्मान होता, हर जगह यह देखलो ॥२॥ धन कमाने का बनाया, ध्येय हर इन्सानने । नहीं धन कमा कर पुन्य कमाओ, फिर तरक्की देखलो ॥३॥ चाहते सबही तरक्की, नहीं चाहते हैं अवनति । होती तरक्की पुन्यसे, 'तनुजली पाप से ही देखलो ॥४॥ पाप करने से तरक्की, होती नहीं वह स्वप्न में ।। सुखभास होगा कुछ समय, अंत में दुःख देखलो ॥ ५॥ पाप और पुन्य ही, रहता है आतम साथ में। नहीं साथ आये धनवैभव, यह प्रत्यक्ष ही दखलो ॥ ६ ॥ पाप क्षय कर पुन्य संचय, के लिये आये यहां । पुन्य का पाथेय संचय कर, अनुभव देखलो ॥ ७ ॥ पाप से दुःख पा रहे थे, जो मनुष्य संसार में। बन गये वे नर सुख, पुन्य से ही देखलो ॥ ८॥ पापीयों में था शिरोमणी, अर्जुनमाली वह कभी। पुन्यवान के सहवास से, पुन्यशाली हुवा वह देखलो ॥ ८॥ पुन्य कमाने का बनाना, ध्येय मुख्य ही विश्व में । पाप से मुख मोढ कर, फिर राजसुख तुम देखलो ॥ ९ ॥ राजमल भंडारी-आगर (मालवा) (१) तनुजली-हीनता । શ્રી નેમિનાથપ્રભુ સ્તવન નેમિજિનેશ્વર વહાલો મહારે, આત્મને આધાર; શિવાદેવી માત નન્દન વાર, યાદવકુલ આધાર-બનેમિ” ૧ શૌરીપુર નયરી પ્રભુ જાય, સમુદ્રવિજય તુમ તાત; पशुY४२ सुशीन स्वाभी, इडीनभवप्रीत-"म" २ રાજીમતી વરકન્યા છોડી દીધા વષીદાન; रेवत ५२ सीधा हीक्षा, सहसावन धान-"नाम" 3 કેવલ લહી બોધ્યા વિપ્રાણી. કર્યો કર્મને અત; पाभर तुम रिशन पाभी, थये। मान्यवन्त-"नभि" ४ તપગચ્છનાયક નેમિસૂરીસર, ઉદયસૂરિ શિરતાજ; નન્દનસૂરિને બાલક માંગે, શિવાનન્દ શિવરાજ-“ નેમિ” ૫ મુનિરાજશ્રી શિવાનંદવિજય .00000000000000Moot m ee RAMIRMATIO P EMAIN000000000000mABADRID000000000000000 0000000000mA ve và vui

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