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है । सचमुच ' में एक ईश्वर के भरोसे ही सब कुछ छोड़ बैठने से हमारे देश में अकर्मण्यता बढ़ी है। लेखक ने इस पर अच्छा प्रकाश डालते हुए लिखा है
"एक ईश्वर के भरोसे सब कुछ छोड़ने से अकर्मण्यता ही बढ़ी इस देश में । जहाँ महाबीर ने यही कहा कि पुरुषार्थ की परम आवश्यकता है, किसी के भरोसे छोड़ने से कुछ नहीं होता । अपने आप प्रयत्न करने से आलोक की प्राप्ति सार्थक हो सकती है, अन्यथा नहीं । प्रयत्न करने से पूर्वकृत भावों व कार्यों के परिणामों का उच्छेद किया जा सकता है एवं रुचिकर परिस्थितियों व अन्धकार अज्ञानता से त्राण पाया जा सकता है । किसी अन्य ईश्वर की कोई शक्ति नहीं कि किसी को बुरे या भले से बचाले । यदि ईश्वर व्यक्ति के हाथ में बुरे या भले परिणामों को बदल सकने की सत्ता दे दी जाये तो उचित अनुचित के नियम का भंग होता है - यह जवाब था महावीर का अकर्मण्य बनाने वाले साकार ईश्वरवादी सिद्धान्त के सामने । जब कार्यों का परिणाम अन्य व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर हो तो सामान्य चेतन व्यर्थको कष्टकारी सुपथ पर क्यों चलें आमोद प्रमोद के सुगम मार्ग को परित्याग करने की प्ररेणा पराश्रयी होने से कभी नहीं मिल सकती ।
जैन धर्म में मूल तत्व एक है द्रव्य । उसके छै भेद हैं- जीव पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और काल ।