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, ( २४ ) का अन्य मार्ग है । यह क्रम सदा सर्वदा अब्यावाध है, न इस क्रम में चेतन का अन्त है, न संसार का । न कभी प्रलय होकर सब कुछ विलीन हो जाता है और न निष्कारण शून्य में से उत्पन्न होता है । दिन के बाद रात की तरह यह जगत् तो सदा काल से अतीत के भण्डार को भरता हुआ अनागत की ओर अग्रसर हो रहा है और सदा होता रहेगा। अपने प्रयत्न पर निर्भर है या तो स्वतन्त्र होना या यों ही निष्चेष्ट रहकर मूक अज्ञानमय जीवन व्यतीत करते हुये काल के प्रवाह में बहे जाना। ___एक २ चेतन को महावीर ने पृथक २ सत्ता दी। अर्थात्
चेतन, जड़ के सूक्ष्मतम अणु की तरह एक २ पृथक द्रव्य है, किंतु जड़ जिस तरह दूसरे २ जड़ों के साथ घुल मिलकर कार्य करता है, उस तरह चेतन अन्य चेतनों के साथ सर्वथा मिल नहीं जाता । एक शरीर धारण कर लेने पर भी चेतन दूसरे के साथ मिलता नहीं और न अपने व्यक्तित्त्व को खोता है।
चेतन, सचमुच, एक मेक में ओत प्रोत भावात्मक प्रदेशों का समूह है एवं ये असंख्य प्रदेश विभाज्य होते हैं। जड़ दृव्य सूक्षतम जड़ाणु-का यथार्थ स्वरूप है, एकाणुत्व में; उसी तरह जीव द्रव्य का यथार्थ स्वरूप है, एक जीवत्त्व में । किंतु स्वरूप का भेद दोनों के एकत्त्व की परीक्षा करने से स्पष्ट हो सकता है। एक परमाणु जहां सचमुच एक है, एक जीव वहां असख्य भावनाओं का पुतला है । परमाणु के बिभाग नहीं किये जा सकते अर्थात् और टुकड़े नहीं हो सकते उसके जीव के भी विभाग नहीं किये जा
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