Book Title: Jain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Author(s): Shubhkaransinh Bothra
Publisher: Nahta Brothers Calcutta
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की आशङ्का थी, किंतु ज्ञान के इतने भव्य संग्रह को इतने से भय के लिये ही विलुप्त कर देना कितना प्रशंसनीय कार्य हुआ है वह व्यवहार के समक्ष आज के युग में अविदित नहीं है। . .
विज्ञान साहित्य का प्रयोगाभाव में विलुप्त हो जाना स्वाभाविक ही है। प्रयोग सुलभ बीज मन्त्रों की आध्यात्मिक साहित्य की तरह जीवित रखा जाता तो सभ्यता का नाश नहीं हो जाता । पूर्व मनीषियों के निर्णय की आलोचना करने नहीं बैठे हैं हम, किंतु मानव की समतुलनात्मक बुद्धि पर उस युग में इतना अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता । ___ मध्य युग के भारतीय वैज्ञानिकों पर इस बात का दोष लगाये बिना हम नहीं रह सकते कि उच्च कोटि की प्रयोग सम्भव धारणाओं को किसी ने लिपि बद्ध नहीं किया। चिरकाल तक मौखिक पाठ द्वारा ही शिक्षा प्रचार होता रहा एवं व्यक्ति विशेष के साथ२ विशिष्ट विद्यायें भी नष्ट होती गयीं। हालांकि लेखन प्रणाली इस देश में अविदित न थी क्योंकि राजकीय अथवा अन्य व्यवहारिक जीवन में लेखन · कला का छूट से उपयोग होता था। किंतु हम देखते हैं कि उच्च कोटि के ज्ञान विज्ञान के पठन पाठन या प्रकार के हेतु कभी प्राग् ऐतिहासिक युग में लेखन कला का उदारता के साथ उपयोग नहीं किया गया। जब तक मनीषियों की शृङ्खला अभग्न थी इस तरह के निर्णय में हम कोई बुराई नहीं देखते, पर ज्यों २ इस शृङ्खला के टूटने की आशङ्का सत्य होने लगी उस काल के मनीषियों के लिये सर्व प्रकारेण यह उचित था कि उन विद्याओं को लिपिवद्ध कर जाते ताकि किसी उन्नत युग में

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