Book Title: Jain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Author(s): Shubhkaransinh Bothra
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 72
________________ ( ५८ ) अन्य वस्तुओं ( स्कंधों) की सूक्ष्म स्थूल गति के कारण व] .परिणाम का ज्ञान सुलम हो सकता है। गति का नियामक द्रव्य चाहिये ही, अन्यथा इस अवकाश स्वभावी आकाश में स्कंध पर कोई नियंत्रण न होगा और पदार्थों आपस में टकरा कर अव्यवस्था कर देंगे । इसी तर अद्यावधि अनुनुमित "स्थिति" सूचक अधर्म तत्व की सारा भूत विचारणा भी महावीर ने ही की । इस जगत् में हमें जो कुछ भी नियमित रूप से स्थिति दिखायी देती है इस में भी कोई न कोई कारण चाहियेबोले । प्रत्येक पदार्थ अपेक्षा से गतिशील है पर अपनी सीमा में जो उसकी गति संभव है-अपनी सीमा का जो वह उल्लंघन नहीं करता, यह क्यों ? स्व सीमा में यह स्थिति क्या है क्यों है ? ये दो प्रश्न महावीर की विचारधारा को मानों घेर कर खड़े हो गये। उन्होंने निर्णय किया कि गतिपूर्वक यह जा स्थिति है उसका नियामक पदार्थ भी होना ही चाहिये । नियामक को तत्व न हो तो समय की तरह अव्याबाध गति युक्त हो जाने पर इस जगत् का कोई नियत स्वरूप दृष्टिगोचर नहीं हो सकता। यहीं इस स्थिति तत्व का उद्घाटन हुआ कि स्थिति सहायक कोई शक्ति चाहिये। . यह जो नियत रूप से पदार्थों का इतस्ततः गमन होता एवं जो अपेक्षाकृत नियमित रूप से वास्तव में जो स्थिति यह स्वतः एक शक्ति प्रेरणांतर्गत है । प्रत्येक पदार्थ की गा MORE

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