Book Title: Jain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Author(s): Shubhkaransinh Bothra
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 25
________________ ( ११ ) अत्याचार करने की प्रवृत्ति के धार्मिक व्यवहार में आने के कारण ही भारतीय शक्ति सामर्थ्य को विदाई मिली । अहिंसा का हाथ कभी कायरता या अत्याचार बढ़ाने में रहा हो, यह मानने को कोई भी संयत तैयार नहीं हो सकता, जैन संस्कृति के वास्तव में विरोधी थे जाति भेद के पृष्ठ-पोशक और आज भी उनका विचार काठिन्य विलुप्त नहीं हो सका है, मध्य युग के जैन इस विरोध से घबड़ा उठे और अपने आपके जाति की जञ्जीरों में बांधकर बचने की सोची, विदेशियों के सामने तो उनकी यह सतर्कता किसी हद तक ठीक थी ( क्योंकि वे अकेले पड़ गये एवं रक्षा का और कोई सुन्दर उपाय न सोच सके) किंतु आज यह भूल ही इस संस्कृति का काल बन रही है, एवं न सँभलने पर शायद ग्रास कर जायगी। ... समय की आवश्यकता के अनुसार दिये गये महावीर के दो मुख्य तात्त्विक व व्यवहारिक उपदेशों का संक्षिप्त परिचय दिया जा चुका है । व्ययहार-जीवन के लिये तो यह उपदेश सामयिक व सर्वोत्तम था। इससे उत्तम व्यवहार नीति की इन दो सर्व श्रेष्ठ मानवीय भावों को मिलाने के लिये व्यवस्था आज तक कोई महानुभाव न कर सका । सहिष्णुता व भद्रता की, भारतीय संस्कृति ने मानवता को यह अत्यन्त मूल्यवान. मेंट दी है, और इनके एकीकरण का सर्व प्रथम प्रयत्न करने वाले ऐतिहासिक युग के महावीर थे। आज मानवता उद्धांत हो द्रुत गति के साथ अनिश्चित पथ की ओर गमन कर रही है; सुपथ निर्देश करते समय

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