Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 13
________________ भगवान महावार : जावन आर सिद्धान्त / ११ मूल स्रोत अभय है। भय का आदि बिन्दु है-देह की आसक्ति। उसकी आसक्ति को छोड़ना, विदेह होना, अभय सिद्धि की अनिवार्य शर्त है। भगवान महावीर जैसे-जैसे विदेह की साधना में आगे बढ़े, वैसेवैसे उनकी अहिंसा, मैत्री और शान्ति की शिखा अधिक प्रज्ज्वलित होती गई। हिंसा, वैर और अशान्ति--ये सब देह में होते हैं, विदेह में नहीं होते। सर्प और समता महावीर कनखल आश्रम के पार्श्ववर्ती देवालय के मण्डप में ध्यान कर रहे थे। चण्डकौशिक सर्प ने दष्टि से विष का विकिरण किया। भगवान पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह भगवान के पैरों में लिपट बार-बार उन्हें डसने लगा। उनकी आंखों से निरन्तर अमृत की धारा बहती रही। उनका मैत्रीभाव विष को निर्विष करता रहा। अंहिसा की हिंसा पर विजय हुई। सर्प का क्रोध शांत हो गया। उसने सदा के लिए अहिंसा का वरण कर लिया। __ महावीर जैसे-जैसे साधना में आगे बढ़े, वैसे-वैसे उनकी चेतना में समता का सूर्य अधिक आलोक देने लगा। सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-सब उस आलोक से आलोकित हो उठे। अरक्षा : सबसे बड़ी सुरक्षा महावीर ध्यान कर रहे थे। एक ग्वाला आया। साथ में बैल थे। उन्हें वहां चरने के लिए छोड़ वह घर चला गया। उसने लौटकर देखा बैल वहां नहीं हैं। वह क्रुद्ध हो गया। बैलों को खोजने इधर-उधर घूमने लगा। थोड़ी देर बाद फिर वहीं पहुंचा, जहां महावीर ध्यान कर रहे थे। बैलों को महावीर के आस-पास देखकर वह स्तब्ध रह गया। यह श्रमण बैलों को हथियाना चाहता है', इस सन्देह ने ग्वाले का क्रोध प्रज्वलित कर दिया। वह रस्सी को आकाश में उछालता हुआ महावीर पर प्रहार करने को आगे बढ़ा, इतने में नंदिवर्धन वहां आ पहुंचा। उसने ग्वाले को समझा-बुझाकर शांत कर दिया। नंदिवर्धन ने महावीर की सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाही। महावीर ने उसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा- 'जो अपने आपको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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