Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 126
________________ जैन धर्म की वैज्ञानिकता जैनधर्म वैज्ञानिक धर्म है। वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है इसलिए किसी भी धर्म को वैज्ञानिक कहने में गौरव का अनुभव होता है। इस गौरवानुभूति की भाषा में जैनधर्म को वैज्ञानिक धर्म कहना सहज सरल है। मैं उस सरल भाषा का प्रयोग नहीं कर रहा हूं। उसकी वैज्ञानिक प्रकृति को ध्यान में रखकर उसे वैज्ञानिक धर्म कह रहा हूं। मनुष्य ही प्रमाण है जैन धर्म की वैज्ञानिक प्रकृति का पहला सूत्र है-स्वयं सत्य की खोज। जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य को सत्य किसी अनिर्वचनीय सत्ता के द्वारा उपलब्ध नहीं होता, वह स्वयं अपनी साधना के द्वारा सत्य की खोज करता है और उसे उपलब्ध होता है। मनुष्य ही सबसे बड़ा प्रमाण है। वही आगम या शास्त्र है। भगवान महावीर ने पुरुष के प्रामाण्य का प्रतिपादन किया। किसी ग्रंथ का प्रामाण्य उन्हें मान्य नहीं था। जैन दर्शन की विचारधारा को स्वीकार करने वाला पुरुष का अनुयायी होता है, किसी ग्रंथ का अनुयायी नहीं होता। सत्य अनन्त है। प्रत्येक द्रव्य में अनन्त पर्यायों का अस्तित्व होता है। नये-नये पर्याय जन्म लेते हैं और पुराने-पुराने पर्याय नष्ट होते जाते हैं। इसलिए कोई भी द्रव्य एकरूप नहीं होता। जितने क्षण उतने उनके रूप। इन नाना रूपों और नाना पर्यायों को जानने के लिए प्रतिक्षण खोज का द्वार खुला रखना होता है। शाश्वत के साथ चलने वाले अशाश्वत को जाने बिना द्रव्य के यथार्थ रूप को जाना नहीं जा सकता। इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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