Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 141
________________ हम हैं अपने सुख-दुःख के कर्ता / १३९ न किसी पर दोषारोपण करो कि अमुक ने मेरे भाग्य को बिगाड़ दिया । जब यह सिद्धान्त समझ में आता है, तब व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा होता है । अपने आचरण पर उसका ध्यान आकर्षित होता है कि मैं किस प्रकार का आचरण करूं? कहीं मेरे आचरण के द्वारा, मेरे व्यवहार के द्वारा मेरा भाग्य कुंठित हो रहा है। बहुत महत्त्वपूर्ण बात है । इस प्रसंग में एक बड़ी मार्मिक कहानी है । दो सगे भाई किसी ज्योतिषी के पास गए। ज्योतिषी बड़ा अनुभवी था। उसने दोनों को देखा। छोटे भाई से उसने कहा- तुम्हें कोई राज्य मिलने वाला है। तुम बड़े शासक बनोगे। बड़े भाई से कहा -- सावधान रहना । कोई बड़ी विपत्ति आने वाली है। दोनों को बता दिया। एक बहुत खुश हुआ। दूसरा बहुत उदास हो गया। दोनों घर पर आ गए। दोनों सगे भाई । दूसरे ने सोचा कि ज्योतिषी ने कहा है, इसलिए विपत्ति तो आने वाली है । मुझे क्या करना चाहिए? ठीक है, कष्ट तो आएगा पर मैं पहले ही क्यों न संभल जाऊं? संभल गया। पूरा जागरूक बन गया। पहले वाले ने सोचा- अब चिन्ता की क्या बात ? राज्य मिलने वाला है। दुनिया भर के जितने व्यसन थे, उसने सब शुरू कर दिए। धन को उजाड़ना शुरू कर दिया। शराब पीना शुरू कर दिया। मांस खाना शुरू कर दिया। दुनिया की सारी बुराइयों में लिप्त हो गया । 1 एक जागरूक बन गया और दूसरा प्रमादी बन गया। हुआ यह कि किसी राजा का पुत्र मर गया। पीछे कोई था नहीं। राजा ने सोचा, बूढ़ा हूं । व्यवस्था करूं । पुराने जमाने में कुछ पद्धतियां होती थीं। पद्धति अपनायी और उसमें बड़ा भाई उत्तीर्ण हो गया। बड़ा भाई राजा बना तो छोटे को बात अजीब लगी। उसने ज्योतिषी को बुलाया और कहा कि आपने उल्टी बात बता दी । ज्योतिषी ने कहा- हमने उल्टी बात नहीं बताई थी। ठीक बताई थी। उस समय जो होने वाला था, वही बताया। दोनों बताओ कि मेरे बताने के बाद तुम दोनों ने क्या-क्या किया ? दोनों भाइयों ने अपनी-अपनी कहानी सुनाई। ज्योतिषी ने कहा- मैं क्या करूं? ज्योतिष का जो नियम था उसी के आधार पर मैंने बताया था । तुमने बुरा आचरण किया। तुम्हें राज्य मिलने वाला था, किन्तु बुरे आचरण के कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164