Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 143
________________ जैन दर्शन को जीने का अर्थ है सत्य को जीना tattimeHAARRHEAmumm H HAAREERAILERTERIAL दर्शन आकाशी उड़ान नहीं है, शेखचिल्ली की कल्पना और पुजारी का सपना नहीं है। वह यथार्थ है। उसे जिया जा सकता है। महावीर ने दर्शन को जिया था। इसीलिए उन्होंने जो कहा, वही जिया और जो जिया, वही कहा। दर्शन के कल्पवृक्ष का एक अमरफल है-कथनी और करनी की समानता। राग और द्वेष के आवेश में जीने वाले मनुष्य की कथनी और करनी में दूरी बहुत होती है। जैसे-जैसे वीतरागता की ओर प्रस्थान होता है वैसे-वैसे कथनी और करनी की दूरी मिटती जाती है। वीतरागता के बिन्दु पर पहुंचते ही कथनी और करनी सर्वथा समान हो जाती है। यथावादी तथाकारी होना वीतराग की पहचान है। यथावादी तथाकारी न होना अवीतराग की पहचान है। आस्था : अर्थ और फलितार्थ __ जैन दर्शन में आस्था रखने का अर्थ है-अवीतराग से वीतराग की ओर जीवनयात्रा का आरम्भ। इसका फलितार्थ है-कथनी और करनी की दूरी के बिन्दु से कथनी और करनी की समानता के बिन्दु की ओर प्रस्थान । एक प्रश्न है जैन मुनि के सामने और एक प्रश्न है जैन श्रावक के सामने-क्या इस दिशा में चरण उठा या नहीं उठा? आगे बढ़ा या नहीं बढ़ा? इसका उत्तर खोजना जैन दर्शन को जीना है। जैन दर्शन को जीने का मतलब सत्य को जीना है, यथार्थ को जीना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164