Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 156
________________ १५४ / जैन दर्शन के मूल सूत्र स्वीकार किया गया। बहुत सारे धर्म यह मानते हैं कि मेरे धर्म में आओ, मेरे सम्प्रदाय में आओ, तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। तुम्हारा मोक्ष हो जाएगा। कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि दूसरे धर्म में जाओ, तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। या दूसरे धर्म में रहते हए भी तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। जैन धर्म ने कहा कि धर्म सम्प्रदाय से ऊपर है। धर्म अलग है और सम्प्रदाय अलग है। धर्म और सम्प्रदाय का गठबन्धन नहीं है। एक व्यक्ति किसी भी सम्प्रदाय में है, किन्तु उसका चित्त निर्मल है, पवित्र है, राग-द्वेष से रहित है तो वह धर्म है। उसने सम्प्रदाय के साथ धर्म को नहीं जोड़ा। यह सार्वभौम धर्म का सिद्धान्त यानी केवल धर्म की मान्यता, सम्प्रदाय की मान्यता नहीं। धर्म सबका एक है। धर्म दो नहीं हो सकता। सत्य दो नहीं हो सकता। इसे सिद्धान्त के रूप मे नहीं, व्यवहार के रूप में जैन धर्म ने स्वीकार किया और उसका प्रतिपादन किया। जो व्यक्ति जैन धर्म का अनुयायी नहीं है, जैन नहीं है, पर वह अच्छा आचरण करता है, जिसमें राग-द्वेष उपशान्त है, उस व्यक्ति का भी धर्म मोक्ष की ओर ले जाने वाला है। वह व्यक्ति मोक्ष की आराधना करने वाला है। इतना बड़ा विराट सिद्धान्त महावीर ने दिया। वर्तमान का युग असाम्प्रदायिकता को महत्त्व देने वाला है। आज भी साम्प्रदायिकता की कमी नहीं है, किन्त वर्तमान का जो प्रबुद्ध चिन्तक है, वह साम्प्रदायिकता के पक्ष में नहीं है। वह धर्म के पक्ष में है। वह साम्प्रदायिक कट्टरता को पसन्द नहीं करता। आज के युग की विशेषता है असाम्प्रदायिक दृष्टिकोण। आम जनता में असाम्प्रदायिकता नहीं आई हो, साम्प्रदायिक कट्टरता कम न हुई हो किन्तु चेतना का जो क्षेत्र है, वहां निश्चित ही असाम्प्रदायिकता को महत्त्व मिला है। तात्त्विक, वैचारिक और चिन्तन के इतिहास के सन्दर्भ में खोज करें कि सबसे पहले असाम्प्रदायिक धर्म या सार्वभौम धर्म का प्रतिपादन किसने किया तो पता चलेगा कि भगवान महावीर ने किया, जैन धर्म ने किया। जैन धर्म का एक शब्द है- 'असोच्चा केवली', अश्रुत्वा केवली। जिस व्यक्ति ने कभी धर्म सुना नहीं, किसी सम्प्रदाय में गया नहीं, किसी सम्प्रदाय को अथवा किसी व्यक्ति को गुरु नहीं माना, किन्तु प्रकृति से बड़ा सरल, भद्र, विनीत, मृदु और सहिष्णु है-इस प्रकार का व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164