Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 139
________________ हम हैं अपने सुख-दुःख के कर्ता / १३७ व्यवहार होता है। आदमी हिंसा करता है। क्यों करता है? क्योंकि हिंसा को पैदा करने वाला रसायन काम कर रहा है। नाड़ीतंत्र का जैसा रसायन बना, वैसा ही वह आचरण करने लग जाता है। ठीक यही प्रक्रिया हमारे सूक्ष्म शरीर में होती है। जिस प्रकार के संस्कार का अनुबंध हमने कर लिया, वे परमाणु वैसे ही रसायन को पैदा करेंगे और वे रसायन हमारे भावों का निर्माण करेंगे। एक पूरी श्रृंखला है। यह स्थूल शरीर है, इसके भीतर है सूक्ष्म शरीर और उसके भीतर है एक सूक्ष्मतर शरीर। हमारे सारे संस्कार, परमाणुओं के अनुबंध उस शरीर में रहते है। सारा लेखा-जोखा वहां है । दूसरा कोई नियंता नहीं है, नियम है, किन्तु नियंता नहीं है। नियम अलग बात है और नियंता अलग बात है । बहुत सारी बातें नियम से चलती हैं। कोई नियंता नहीं होता। पानी बरसा, बूंदे गिरी और घास उग आयी। अंकुर उग आया। कौन नियंता है? कोई नियंता नहीं है। यह नियम है। भूमि उर्वरा है। पानी मिला और घास उग आयी। यह एक नियम है । दो शक्तियां मिलीं, बिजली पैदा हो जाएगी। पोजेटिव और नेगेटिव-इन दोनों शक्तियों के मिलते ही बिजली पैदा हो जाएगी। जो बिजली आदमी पैदा करता है, उसका तो नियंता आदमी है। बिजली पैदा करने वाला तो आदमी है। जो बिजली यहां पैदा हुई, वही बिजली बादलों में है। उसका कोई नियंता नहीं। यह प्रकृति का नियम है। सारा संसार नियमों से चलता है। दो प्रकार के नियम होते हैं- एक जागतिक नियम आर दूसरा सामयिक नियम । यह मनुष्य के द्वारा बनाया जाता है या पदार्थ के योग से बनता है। सत्य की खोज का अर्थ है नियम की खोज। विज्ञान का विकास नियमों के आधार पर हुआ है। जिस व्यक्ति को पता चला, एक सचाई प्रकट हो गई। हजारों-हजारों नियम हैं इस संसार में। हमारे शरीर में भी हजारों नियम हैं। बहुत सारे नियम हैं। नियम का पता चला और नयी बात सामने आ गई। कुछ काम स्वभाव के द्वारा होते हैं और कुछ काम क्रिया के द्वारा होते हैं। कार्य-कारण का भाव सर्वत्र लागू नहीं होता। जो कार्य होता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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