Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 129
________________ समस्या और मुक्ति इस दुनिया में समस्या का कोई अन्त नहीं है। पर प्रश्न होता है कि वास्तविक समस्या है क्या? इस पर जैन दर्शन ने विचार किया और संक्षेप में समाधान प्रस्तुत किया। समस्या का नाम है आस्नव, केवल तीन अक्षर । समाधान है संवर, केवल तीन अक्षर। आस्त्रव समस्या है और संवर मुक्ति है। इसको हम कुछ विस्तार से समझें। प्रत्येक व्यक्ति में देखने का कोण होता है, दृष्टिकोण होता है। वह मिथ्या या सम्यक् होता है। पहली समस्या है मिथ्या दृष्टिकोण। इससे दूसरी समस्या पैदा होती है। समस्या समस्या को पैदा करती है। दूसरी समस्या है तृष्णा। एक ऐसी प्यास जग जाती है, जो अमिट है। वह कभी बुझती नहीं है। पदार्थ और भोग के प्रति वह प्यास जाग जाती है। जैनसाहित्य में इस प्यास को रूपक के द्वारा समझाया गया है। एक आदमी जंगल में कोयला बनाने का काम करता था। वह जंगल में जाता, लकड़ियां काटता और कोयला बनाता। जेठ का महीना। चिलचिलाती धूप । मध्याह्न का समय । एक ओर आग और दूसरी ओर सूर्य का तीव्र ताप। उसे प्यास लगी। पास में पानी थोड़ा था। उसने कंठ गीला किया और यह सोचकर सो गया कि जागते रहने से प्यास अधिक लगेगी। स्वप्न आया। उसने देखा कि वह एक समुद्र के पास खड़ा है; प्यास तीव्र है। उसने समुद्र का सारा पानी पी लिया है। फिर भी प्यास नहीं बुझी। अब उसने सोचा, क्या करूं? वहां से वह चला। सरोवरों और नदियों के पास गया। उनका सारा पानी पी गया, फिर भी प्यास ज्यों-की-त्यों बनी रही। वह बुझी नहीं। फिर वह तलैया पर गया। पानी सूख गया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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