Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 125
________________ शरीर और आत्मा का भेदाभेदभाव / १२३ अजीवों के काय तो स्पष्ट ही है। किसी की मूर्ति बना दी, किसी व्यक्ति का फोटो ले लिया। फोटो और मूर्ति में चित्रित शरीर अजीव होता है। जीव और अजीव दोनों के शरीर हैं। जीव के भी शरीर होता है, अजीव भी शरीर युक्त है। ___ जीव और शरीर का सम्बन्ध है । जीव और मन का सम्बन्ध है । जीव और वाणी का सम्बन्ध है। मन और वाणी का जीव से चिरस्थायी सम्बन्ध नहीं होता। शरीर का जीव से चिरस्थायी सम्बन्ध होता है । मन का सम्बन्ध त्रैकालिक नहीं होता। शरीर का सम्बन्ध त्रैकालिक हो सकता है । जन्म से पूर्व भी काय होता है और वह मृत्यु तक साथ रहता है। मेंढक मरा हुआ है। वर्षा होती है। उसका मृत शरीर फिर जीवित हो जाता है। मृत मेंढक फिर उसी शरीर में जीवित बन जाते हैं। जीवन से पूर्व उसमें शरीर विद्यमान था। शुष्क वनस्पति, काई वर्षा से पुनः जी उठती हैं, हरीतिमा का वरण कर लेती हैं। काय व्यतिक्रान्त होने पर भी काय रहता है। पहले भी काय था वर्तमान में भी काय है। 'कायज शरीर' चीयमान अवस्था है। उसमें निरन्तर चयापचय/मेटाबोलिज्म की क्रिया चलती रहती है। हमारे शरीर में प्रतिक्षण कितने ही नए परमाणु प्रवेश करते हैं। कितने ही पुराने परमाणु चले जाते हैं। हम धूल को मुट्ठी में भरकर ऊपर उठाते हैं पर उसमें से असंख्य बालु कण नीचे गिर जाते हैं। शरीर का चयापचय भी इसी प्रकार चलता रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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