Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 87
________________ परिणामि-नित्य/ ८५ द्रव्य । हमारी दुनिया बहुत छोटी हो जाएगी। विस्तार शून्य हो जाएगी। हम भेद के परिपार्श्व में चलें तो द्रव्य लुप्त हो जाएगा, बचेगा पर्याय। हमारी दुनिया बहुत बड़ी हो जाएगी। भेद अभेद को निगल जाएगा। केवल विस्तार और विस्तार। ___ परिणमन के जगत में जैसा जीव है, वैसा ही पुद्गल है। किन्तु इस विश्व में जितनी अभिव्यक्ति पुद्गल द्रव्य की है, उतनी किसी में नहीं है। अपने रूप को बदल देने की क्षमता जितनी पुद्गल में है, उतनी किसी में नहीं है। हमारे जगत में व्यक्त पर्याय का आधारभूत द्रव्य यदि कोई है तो वह पुद्गल ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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