Book Title: Jain Darshan ke Mul Siddhanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 94
________________ ९२ / जैन दर्शन के मूल सूत्र चतुःस्पर्शी होता है इसे आंखों के द्वारा नहीं देखा जा सकता। प्रोटोप्लाज्म भी अत्यन्त सूक्ष्म कण है। अवधिज्ञानी, अतीन्द्रिय ज्ञानी अपने आंतरिक उपकरणों को जागृत कर सूक्ष्म शरीर को देखते है और वैज्ञानिक सूक्ष्मयंत्रों द्वारा प्रोटोप्लाज्म को देखते हैं । भौतिक शरीर के भीतर जो अदृश्य शरीर है, जिसे यंत्रों द्वारा देखा गया है वह भी प्रोटोप्लाज्म या सूक्ष्म शरीर है। वैज्ञानिक भारतीय दर्शन में वर्णित आत्मा के स्वरूप को अब तक नहीं पकड़ पाए हैं। भगवान महावीर ने पूर्वजन्म को जानने के तीन साधन बतलाए हैं सह सम्मुइयाए-स्व-स्मृति। प्राकृत में सह शब्द के दो अर्थ होते हैं-स्वयं और सह यानी साथ। यहां 'स्व' शब्द इष्ट है। पर वागरणेणं-पर व्याकरण के द्वारा। प्रश्नोत्तर यानी जिज्ञासा और समाधान के द्वारा पूर्वजन्म को जाना जा सकता है। पर व्याकरण का अर्थ प्रत्यक्ष द्वारा निरूपित भी किया गया है। किन्तु यह अर्थ ज्यादा युक्ति-संगत नहीं है। ___अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा-न जिज्ञासा, न स्वस्मृति किन्तु दूसरों के पास सुनकर जानना । जैसे-किसी व्यक्ति ने कहा- पूर्वजन्म में अमुक व्यक्ति वह था। इस बात को सुनकर पूर्वजन्म का बोध हो जाता है। स्मृति सूक्ष्म शरीर में संचित रहती है। वह किसी निमित्त से जाग जाती है तो जाति-स्मृति कहलाती है। विज्ञान एवं परामनोविज्ञान की मान्यता है कि शिशु के स्मृति-पटल पर प्रोटोप्लाज्म कण जागृत होने पर स्मृति जाग जाती है, पूर्वजन्म की घटनाएं याद आने लग जाती हैं। जैन दर्शन सूक्ष्म शरीर की जागृति से स्मृति जागरण स्वीकार करता है। ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करने से चित्त की एकाग्रता तथा शुद्धि होने पर पूर्वजन्म की स्मृति ही उत्पन्न होती है। कोई गहरी चोट होती है, लेश्या विशुद्ध हो जाती है। मनुष्य खूब गहरे चिन्तन में चला जाता है तो उसके संस्कार जागृत हो जाते हैं। भगवान महावीर ने कहा- जो सब दिशाओं में अनुसंचरण करता है, जो सब दिशाओं अनुदिशाओं से आया है 'सोऽहं' वह मैं हूं। यहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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