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मैं कौन हूँ ? !
१०९ और परस्पर मिश्रित होकर जितने प्रकार के स्कंध हो सकते हैं, बना रहे हैं। इस शुद्ध यांत्रिक क्रिया का चित्र आप अपने मन में खींच सकते हैं। क्या यह आपकी दृष्टि, स्वप्न या विचार में आ सकता है कि इस यांत्रिक क्रिया एवं इन मृत परमाणुओं से बोध, विचार एवं भावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं? क्या फांसों के खटपटाने से होमर कवि या बिलयर्ड खेल की गेंद के खनखनाने से अवकल गणित (Differential Calculus) निकल सकता है ?.......आज मनुष्य की इस जिज्ञासा कि परमाणुओं के परस्पर सम्मिश्रण की यांत्रिक क्रिया से ज्ञान की उत्पत्ति कैसे हो गई, सन्तोषप्रद उत्तर नहीं दे सकते ।”
पाचन और श्वासोच्छ्वास की क्रिया से चेतना की तुलना भी त्रुटिपूर्ण है। ये दोनों क्रियाएं स्वयं अचेतन हैं। अचेतन मस्तिष्क की क्रिया चेतना नहीं हो सकती। इसलिए यह मानना होगा कि चेतना एक स्वतंत्र सत्ता है, मस्तिष्क की उपज नहीं।
· शारीरिक व्यापारों को. ही मानसिक व्यापारों के कारण मानने वालों को दूसरी आपत्ति यह आती है कि-“मैं अपनी इच्छा के अनुसार चलता हूँ-मेरे भाव शारीरिक परिवर्तनों को पैदा करने वाले हैं” इत्यादि प्रयोग नहीं किये जा सकते।
_ 'मनोदैहिक सहचरवाद' के अनुसार मानसिक तथा शारीरिक व्यापार परस्पर सहकारी हैं; इसके सिवाय दोनों में किसी प्रकार का संबंध नहीं। इस वाद का उत्तर अन्योन्याश्रयवाद है। उसके अनुसार शारीरिक क्रियाओं का मानसिक व्यापारों पर एवं मानसिक व्यापारों का शारीरिक क्रियाओं पर असर होता है। जैसे
१. मस्तिष्क की बीमारी से मानसिक शक्ति दुर्बल हो जाती है। २. मस्तिष्क के परिमाण के अनुसार मानसिक शक्ति का विकास होता है।
साधारणतया पुरुषों का दिमाग ४६ से ५० या ५२ औंस तक का और स्त्रियों का ४४-४८ औंस तक का होता है। देश-विशेष के अनुसार इनमें कुछ न्यूनाधिकता भी पायी जाती है। अपवाद रूप असाधारण मानसिक शक्ति वालों का दिमाग औसत परिमाण से भी नीचे दर्जे का पाया गया है। पर साधारण नियमानुसार दिमाग के परिमाण और मानसिक विकास का सम्बन्ध रहता है।
३. बाह्मीघृत आदि विविध औषधियों से मानसिक विकास को सहारा मिलता है।
४. दिमाग पर आघात होने से स्मरण-शवित क्षीण हो जाती है।
५. दिमाग का एक विशेष भाग मानसिक शक्ति के साथ संबंधित है, उसकी क्षति से मानस-शक्ति में हानि होती है।