Book Title: Jain Darshan Aur Sanskriti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 269
________________ चिन्तन के विकास में जैन आचार्यों का योग - २५५ आक्रमण के प्रति आक्रमण और शक्ति-प्रयोग के प्रति शक्ति-प्रयोग कर हम हिंसा के प्रयोगात्मक रूप को टालने में सफल हो सकें, यह सम्भव है, वैसा कर हम हृदय को पवित्र कर सकें या करा सकें, यह सम्भव नहीं है। आचार्य भिक्षु ने कहा-शक्ति के प्रयोग से जीवन की सुरक्षा की जा सकती है, पर वह अहिंसा नहीं है। अहिंसा का अंकन जीवन या मरण से नहीं होता, उसकी अभिव्यक्ति हृदय की. पवित्रता से होती है। नैतिकता भगवान् महावीर ने गृहस्थ के लिए जो आचार-संहिता निर्धारित की, उसमें नैतिकता का मुख्य स्थान है। गृहस्थ सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जीता है। उसका व्यवहार समाज को प्रभावित करता है। अध्यात्म वैयक्तिक है। उसका व्यवहार में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब वैयक्तिक नहीं होता, वह सामाजिक हो जाता है। धार्मिक व्यक्ति अपने अन्त:करण में आध्यात्मिक रहे और व्यवहार में पूरा अधार्मिक, यह द्वैध अध्यात्म का लक्षण नहीं है, अध्यात्म आन्तरिक वस्तु है। उसे हम नहीं देख सकते । उसका दर्शन व्यवहार के माध्यम से होता है। जिस व्यक्ति का व्यवहार शुद्ध, निश्छल और करुणापूर्वक होता है, वह व्यक्ति आध्यात्मिक है। उसका व्यवहार अध्यात्म को बाह्य जगत् में प्रतिबिम्बित कर देता है। किन्तु जैसे-जैसे धर्म के क्षेत्र में बहिर्मुखी भाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे धार्मिक का व्यक्तित्व विरूप बनता गया-एक रूप उपासना के समय का और दूसरा रूप सामाजिक व्यवहार के समय का। एक ही व्यक्ति उपासना के समय वीतराग की प्रतिमूर्ति बन जाता है और दुकान या कार्यालय में ब्रूर बन जाता है। आचार्यश्री तुलसी ने धर्म के क्षेत्र में पनप रही इस द्विरूपता पर चिन्तन कर धर्मक्रांति की आवाज उठाई। उसकी क्रियान्विति के लिए अणुव्रत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उसकी पृष्ठभूमि में उनका चिन्तन शाश्वत होने के साथ-साथ बहुत ही युगीन है। अनैतिक का मूल हेतु वैषम्य है। साम्य की स्थिति का निर्माण किए बिना नैतिकता को विकसित नहीं किया जा सकता। सर्वधर्म-समभाव और शास्त्रज्ञ उपाध्याय यशोविजयजी ने शास्त्रज्ञ की पहचान के लिए तीन मानदण्ड प्रस्तुत किए-अनेकांत, मध्यस्थभाव और उपशम-कषाय की शांति । उन्होंने कहा- “जो व्यक्ति मोक्ष को दृष्टि में रखते हुए अनेकान्त चक्षु से सब दर्शनों की तुल्यता को देखता है, वही शास्त्रज्ञ है।"

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