Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh Author(s): Dharmanand Kaushambi Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 5
________________ ने गणिका का अर्थ वेश्या और पुष्प का अर्थ आर्तव लगा कर उसकी तलाश में घूमने लगे। इस व्यवहार शून्य पण्डित को इतना भान नहीं हुआ कि ऋतुधर्म के समय जिस अपवित्र आर्तव स्त्राव के कारण स्त्री का स्पर्श करना भी लोक और शास्त्र से विरूद्ध है, उस आर्तव को नासिका के द्वारा सूघने का उपदेश कोई विवेकी विद्वान किसी पवित्र व्यक्ति को कैसे कर सकेगा? . इसी तरह संस्कृत विद्या के एक प्रौढ विद्वान् ज्वर रोग से पीड़ित होकर किसी सद्वैद्य के पास गये । वैद्यजी ने उपदेश किया कि श्राप तीन रोज तक "कएटकागि' का काढ़ा पीजिये । कण्टकारि वनस्पति विशेष का नाम है जिसको हिन्दी में भटकटइयां और मराठी में रिंगणी कहते है। उसका काढा पीने से ज्वर शांत हो । जाता है, वैद्यक शास्त्र और कोष के अनभिज्ञ पण्डितजी ने समास करके उसका अर्थ सिद्ध किया कि कण्टकस्य अरिः कपटकारिः अर्थात् “जूता" का काढा करके पीना चाहिये। ____ बस ! ये दोनों उदाहरण उन पण्डितमानियों पर लागू होते हैं। जो लोग जैनागम तत्ववेत्ता पुरुषों की उपासना तथा वैद्यक. कोष और व्यवहार का अध्ययन नहीं करते हुए प्रचलित शब्दों पर से मच्छ का अर्थ मछली, मंस का अर्थ मांस (गोश्त) कवोय का अर्थ कबूतर, कुक्कुड का अर्थ मुर्गा और मज्जार का अर्थ बिलाव करते हैं। उन पण्डितों को इतना भो विवेक पैदा नहीं होता है कि जिन पवित्र जैनागम और जैन धर्म के ग्रंथों में स्थान २ पर जैन मुनियों पर ऐसा प्रतिबंध लगाया गया है कि जहां पर मत्स्यमांस का संसर्ग भी जानने में आवे वहां जाना नहीं, और मन से भी मद्य मांसादि अभक्ष्य पदार्थों का चिंतन नहीं करना । ऐसे पवित्रात्मा साधुओं को सिर्फ एक स्थल पर मत्स्य-मांस लेने का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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