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( २१ ) धारणा गुरु परम्परा के अनुसार लिख रहे हैं-मूल पाठका अर्थ समझने के पहले इस बात को पूर्ण ध्यान में रख लेना चाहिये कि कि मांस शब्द का एक अर्थ पशु-पक्षीका मांस ( गोस्त ) होता है। दूसरा अर्थ वनस्पति के शरीर के अंदर की गिर (गुद्दा) होता है । देखिये गीर्वाण लघुकोष पृष्ट ३७६ । इस बात का स्पष्टतया वर्णन आगे श्री भगवतो सूत्र के समाधान प्रसंग पर करेंगे। मच्छ शब्द का एक अर्थ मछली और दूसरा अर्थ मच्छ नामकी वनस्पति, उसको हिन्दी में मत्सी और मराठी में मत्स्याक्षी कहते हैं देखिये भाव प्रकाश पृष्ट २३० श्लोक २४६
मत्स्याक्षी वाहिलका मत्स्यगन्धा मत्स्यादनीति च । मत्स्याक्षी ग्राहिणी ज्ञाता, कुष्ठवित्तकफास्त्रजित् । लघुस्तिक्ता कपाया च स्वाद्वी कटुविपाकिनी।
. और उसको ही मागधी भाषा में मच्छ कहते हैं, देखो-पाइय सद्द महरण यो नामक कोशके पृष्ट १२७४ “मत्स्य के आकार को एक वनस्पति । एवं कण्टक शब्द का एक अर्थ कांटा और दूसरा अर्थ कण्टक इव कण्टक" अर्थात् वनस्पति के अन्दर की रेसा (नस) अथवा सूई के समान तीक्ष्ण अग्रभाग वाला, किंवा वनस्पति विशेष, बबूल, करीर, हिंगण बेट इत्यादि देखिये गीर्वाण लघुकोश पृष्ट २३६ तथा अस्थि शब्द का एक अर्थ हड्डो, दूसरा अर्थ बोज या गुठली होता है । देखिये गीर्वाण लघुकोष पृष्ट ८० । यदि सूत्र में पहले अर्थ का ग्रहण करते हैं तो आचार और प्ररुपणा से सूत्र का कुछ भी संबंध नहीं रह जाता है। अतः "अजानालभेत"इस श्रुति का प्रमाण जो पहले दे आये हैं, उसो न्याय से दूसरा अर्थ लेकर हो श्राचार और प्ररुपणा के अनुसार शास्त्रार्थ का समन्वय होता है। ..
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