Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ ( २६ ) नहीं है किन्तु अर्थाभास है । शुद्ध अर्थ वह होगा जो प्रकरण, प्ररूपणा और धर्म के प्राचार-विचार से मिलता जुलता होगा आक्षेपियों का अर्थ पहले तो एकदम प्रकरण विरुद्ध है क्योंकि यह पाठ उस स्थल का है जब भगवान् महावीर प्रभु के ऊपर गोशाला ने तेजो लेश्या फेंकी उस समय भगवान के शरीर में गर्मी, दाह, मरोड़ा आदि रोग व्याप्त हो गये भगवान् की दशा देखकर सिंह अनगार मालुक कक्ष नामक वन में जाकर रोने लगते हैं। भगवान ने अपने केवल ज्ञान से जान लिया और सिंह अनगार को अपने पास बुला कर फरमाया कि हे सिंह अनगार ! तुम चिंता मत करो मैं अभी साढ़े पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहूँगा। अब तुम एक काम करो कि मेंढिक नामक नगर में जाओ (यहां का मूलपाठ और आक्षेपियों का अर्थ पहले दिया जा चुका है) श्राक्षेपी लोग कहते हैं कि भगवान ने कबूतर का मांस लेने के लिये मना किया और कुक्कुट (मुर्गा) का मांस लाने के लिये उपदेश किया, अब देखिये भावप्रकाश पूर्व खण्ड पृष्ट ३३४ श्लोक नं ६० में कुक्कुट के मांस का गुण धर्म कुक्कुटो बृहणः स्निग्धो, वीर्योष्णोऽनिलहृद्गुरुः । ___ अर्थात् कुक्कुटका मांस पुष्टिदायक, स्निग्ध, उष्णवीर्य, वातनाशक और गुरु है। उसी पुस्तक के पृष्ट ३३५ में कबूतर के मांस का गुणधर्म देखिये पारावतो गुरुः स्निग्धो रक्तपित्तानिलापहः । संग्राही शीतलस्तज्ज्ञः, कथितो वीर्यवर्द्धनः ॥ अर्थात् कबूतर का मांस भारी, स्निग्ध, रक्तपित्त और वातनाशक, संग्राही, शीतल और वीर्य वर्द्धक शरीर-शास्त्र वेत्ताओं ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42