Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 33
________________ बिजौरा पाक, देखिये । पाइय सहमहएणवो पृष्ट ३१६ इसी तरह मज्जार शब्दका एक अर्थ होता है बिलाव, और दूसरा अर्थ होता है वात व्याधि के वायुओं में कोई वायुविशेष देखो पाइय सद्द महएणवो पृ १२७४, तीसरा अर्थ होता है माज्जार नामक वनस्पति, देखो पन्नवणाजी प्रथम पद के वृक्षाधिकार में । मांस शब्द का अर्थ जिस तरह गोश्त में प्रसिद्ध है, उसी तरह फलों के गिर में भी प्रसिद्ध है । देखो सुश्रुत संहिता के अन्दर बिजौरा वनस्पति के गुणधर्म में: त्वक्तिक्ता दुर्जरा तस्य वातकृमिकफापहा । स्वादु शीतं गुरु स्निग्धं मांसं मारुतपित्तजित् ।। अर्थात् बिजौरा वनस्पति के ऊपर का छिलका अत्यन्त तिक्त होता है, और वह वात कृमि और कफ को हरण करने वाला है और उस वनस्पति का मांस स्वादिष्ट शीतल, गुरु स्निग्ध तथा वातपित्तको हरण करने वाला है। अब इतना स्पष्ट प्रमाण मिलते हुए भी दुराग्रही लोग मांस शब्द का अर्थ गोश्त करते बैठे तो उनकी बुद्धि की बलिहारी है। ___ अब भगवती सूत्र के मूल पाठ का अर्थ भगवान की प्ररूपणा के अनुसार यह सिद्ध हो गया कि-हे सिंह अनगार ! रेवती गाथा पत्नी ने जो दो कूष्माण्ड के फल हमारे लिये बनाये हैं, उस आहार को श्राधाकर्मी होने से नहीं लाना और जो वात व्याधि के शान्त्यर्थ अथवा विरादरी कन्द नामक औषधि के रस से बिजौरा पाक तैयार किया है; उसको लाना । ऐसा युक्ति युक्त शास्त्र सम्मत श्राचारसंगत अर्थ श्राक्षेपियों को क्यों नहीं सूझता ? अथवा सूझते हुये भी आँख पर पट्टी बांधकर बनावटी अन्धे क्यों बन रहे हैं ? यहां पर कुछ बातें और भी विचारणीय है-बात यह है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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