Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 29
________________ ( २७ ) इस तरह जैन शास्त्रों बहुत स्थान स्थान पर निषेधात्मक प्रमाण मिलते हैं । भला पाठक लोग विचार करें कि जो भगवान को मांसाहारी बता रहे हैं, उनको इससे बढ़कर क्या प्रमाण देना चाहिये ? आक्षेप कर्ता व्यक्ति किसी एक धर्म के संपूर्ण ग्रंथों का गुरु मुख से ग्रंथि उद्घाटन के साथ अध्ययन तो करते ही नहीं लेकिन वाचन भी नहीं करते और कहीं पर भ्रामक एक शब्द भी पा गये तो उसोको लेकर कूप मंडूक के समान उडान करने लगते हैं, आखिर विद्वानों के सामने लज्जित होना पड़ता है। . (३) तीसरा प्रमाण मांसाहारी लोग श्री भगवतीजी सूत्र का देते हैं कि खुद भगवान महावीर स्वामी ने ही मांसाहार किया है, वह पाठ भगवतीजी सूत्र के १५ वें शतक में रेवती गाथा पत्नी के दानाधिकार में है । जैसे तं गच्छह णं तुमं सीहा ! मेंढियगामं नगरं, रेवतीए गाहावइणीए गिहे, तत्थ णं रेवतीए गाहावाणीए मम अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो। अस्थि से परियासिए मजारकडए कुक्कुडमंसए तं प्राहराहि, एएणं अट्ठो। ___उसका अर्थ मांसाहारी लोग नीचे लिखे अनुसार करते हैं, जैसे श्री महावीर स्वामी ने अपने सिंह नामक शिष्य को कहा, कि तुम मेढिक गांव में रेवती गाथा पत्नी के पास जाओ उसने मेरे लिये दो कबूतर सिझाकर रक्खे हैं, वे मुझे नहीं चाहिये । कल बिलावसे मारे हुए कुक्कुटका मांस तुमने तैयार किया है वह दो ऐसा उसे कहो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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