Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 21
________________ ( १६ ) हम ऊपर लिख आये हैं कि शब्दों के अर्थ अनन्त होते हैं, जिस भूमिका का व्यक्ति होगा, उसको वही अर्थ भासित होगा। देखिये-बौद्धों के ऐतिहासिक तथा धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि बुद्ध भगवान ने परिनिर्वाण अर्थात आयुष्य के अन्तिम दिन में सूकर मद्दव पदार्थ भोजन के लिये ग्रहण किया। अब बौद्धों में मांसाहारी पार्टी है, वह सूकर मद्दव शब्द का अर्थ सूअर का कोमल मांस ऐसा करती है। निर्मान्साहारी पार्टी शकर से मर्दित वनस्पति या, शंकर से मर्दित भूमि में उगनेवाली अहिछत्रक नामक वनस्पति, ऐसा अर्थ करती है। खुद कोशाम्बोजी ने ही स्वरचित भगवान बुद्ध नामक पुस्तककें उत्तरार्द्ध में पृष्ठ ६६ पेरेग्राफ ४ में उदान अट्ठिकथा नामक बौद्ध ग्रंथ का आधार दिया है कि “केचिय सूकर मद्दवंति, न सूकर मंसं, सूकरेहि मदित वंसकलोरीत्ति वदंति । अन्नेतु-सूकरोहि महितपदेसे जात अहिच्छत्तकत्ति । अर्थात कोई ऐसा कहता है कि सूकर मद्दव शब्द का अर्थ शूकर का मांस नहीं है किन्तु शूकर से तोड़ो गई वनस्पति अर्थ है । दूसरे लोग कहते हैं कि शूकर द्वारा खोदी गई जमीन में अहिच्छत्रक नामक वनस्पति । अब यहां विचार करने की बात है, कि अहिंसा धर्म के प्ररुपक भगवान बुद्ध के विषय में युक्तिसंगत, प्ररुपणासंगत और बहुमत अर्थ वनस्पति को मान्यता न देकर इन्दिय लोलुपी जीव किसी महान पुरुष को मांस सेवी सिद्ध कर रहे हैं; अब इससे अधिक दुस्साहस क्या होगा? ___यहां पर बुद्ध मत के अनुयायी सैंकड़ों सहृदय व्यक्ति अर्थ करते हैं, कि शूकर का पर्याय वाचक शब्द है-वाराह, मद्दव शब्द का अर्थ होता है मृदु, अतः बुद्ध भगवान ने “ वाराहीकन्द " नामक वनस्पति के गिर को लिया है । यहो मत बहुमत है और भगवान के अहिंसा प्ररुपणा से सुसंगत है, तो धर्म संगत और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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