Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 19
________________ ( १७ ) कहने का सारांश यह है कि शास्त्र के मूल पाठ में यहांपर atara शब्द आया है, वह रेसा अर्थात् वनस्पतियों के अन्दर जो से होती हैं उसको सूचित करता है । वे अगर आहार में आवें तो उनको परिठाना पड़ता है । अतः बोज वाले और रेसावाले वनस्पति निष्पादित आहार साधु न लेवे । अब ऊपर लिखे हुए श्री दशवैकालिकजी सूत्र के अर्थ से श्री श्राचारांगजी सूत्र के पाठका भी बहुत अंशों में खुलासा हो ही गया, किन्तु आक्षेपकारी लोग भोले भाले प्राणियों को धोखे में न ला सकें इसलिये उसका भी ईषद्विवरण दे दिया जाता है । श्री चागंग सूत्र का मूल पाठ यह है I 9 से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणेज्जा, बहुट्ठियं मंसं वा मच्छं वा बहुकंटयं, अरिसं खलु पडिगाहियंसि अप्पे सिया भोयणजाए बहु उज्झिय धम्मिए । तहप्पगारं बहुट्टिमं वा मंसं मच्छं वा बहुकंटयं, लाभे वि संते यो पडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुष्पविट्ठे समाणे परो बहुट्ठिए मंसेण मच्छेण उवणिमंतेजा, श्राउसंतो समणा अभिकखसि बहुट्ठियं मंसं पडिगाहेतए १ एयष्पगारं गिग्घोसं सोच्चाणिसम्म से पुव्वमेव श्रालोएजा, श्रासोति वा भइणीत्ति वा गो खलु मे कप्पर बहुट्ठिय मंसं पडिगाहिचए । अभिकखसि से दाउ जावइयं तावइयं पोग्गलं दलयाहि मा अट्ठियाई । से एवं वदंतस्स परो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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