Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 18
________________ ( १६ ) अभक्ष्य अंश है उसमें प्रयोग करते है। क्योंकि शब्दों के अर्थ प्रकरण के अनुसार हुश्रा करते हैं, जहां पर कोष भी काम नहीं देते हैं । अतएव महाभाष्यकार पतञ्जलि ने अपने विद्यार्थियों को उपदेश किया कि "सर्वे सर्वार्थ वाचकाः" अर्थात सभी शब्द सभी अर्थों को कहते हैं। विद्यार्थियों ने कहा कि भगवान् 'नैतदुपलभ्यते" अर्थात् ऐसा व्यवहार में देखा तो नहीं जाता, क्योंकि घट शब्द से घट हो अर्थ होता है, पट अर्थ नहीं होता। भाष्यकार ने उत्तर दिया कि "उपलब्धौ यत्नः क्रियताम्" अर्थात सभी शब्द सभी अर्थो के वाचक हैं, इसको जानने के लिये यत्न करो। 'काम्बोजाः गच्छतोत्यस्य स्थाने सवतीति प्रयुञ्जन्ते" अर्थात् कम्बोज देश वाले गच्छति के स्थान में सति का प्रयोग करते हैं। भाष्यकार के इस कथन से यह सिद्ध हो गया कि जब तक मनुष्य देश परिभ्रमण करके उन २ देशान्तरों में प्रचलित व्यवहारिक शब्दों का अर्थ न समझ लें, तथा सभी मतों के सम्पूर्ण ग्रंथों का यथावत् अध्ययन न कर लें, तब तक किसी एक शब्द का एकान्त अर्थ करके बैठना, यह बड़ी भारी भूल है; अतः जैनाचार्यों में प्राचीन काल से जो यह प्रथा कहने की चली आ रही है कि "मेरा गुरुगम और व्यक्तिगत अर्थ यह है, तत्व तो केवलिगम्य है" यह कितना ऊंचा आदर्श है ? अगर कोशाम्बीजी या उनके अन्य सहोदर कएटकका अर्थ मछलीका कांटा ही लेकर बैठेगे तो अधोलिखित बातों का अर्थ समन्वय करें। कण्टकोद्धरणे नित्यमातिष्टेद्यत्नमुत्तमम् । किंच-एवमादीन् विजानीयात्प्रशांल्लोककण्टकान् । अपरंच-सर्व कण्टक पापिष्टं हेमकारंतु पार्थिव । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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