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के ज्येष्ठ भ्राता बलराम, इन तीनों में से यहां कौन लिये जाय ? इस शंका स्थल पर पूर्वोक्त परिभाषा के बल से कृष्ण वासुदेव के साहचर्य से बलराम का ही बोध होता है, यह बात आबालवृद्ध सभी जानते हैं । इसी तरह श्री दशवैकालिक सूत्र की इस गाथा में अतिक, तिन्दुक बिल्व इक्षुखण्ड और शाल्मली इन वनस्पतियों के साहचर्य से बहु अस्थिक अर्थात बहुत गुठली वाली और बहु कंटक अर्थात बहुत कांटेवाली वनस्पतियों का ही ग्रहण होगा। मांस और मछली का अर्थ करना प्ररूपणा, प्रकरण और साहचर्य से सर्वथा विरुद्ध है । इस बात को हर एक सहृदय निष्पक्षपात व्यक्ति स्वीकार कर सकेगा ।
इस उपरिलिखित न्याय के अनुसार गुरु परम्परा से प्राप्त यह होता है कि इस गाथा में पुरगल शब्द आया हुआ है उसका रूप रस गंध स्पर्शवाला कोई पदार्थ इतना ही मूल अर्थ होता है, चाहे उसको फलका गिर (गूदा ) इस अर्थ में लगावें चाहे प्राणियों के मांस अर्थ में लगावें लेकिन कौनसा अर्थ कहां पर लगाया जोय ? इसका निर्णय इसके विशेषण शब्दों परसे होगा । अब यहां पर पुद्गल शब्द के पहले बहु द्वियं ऐसा विशेषण दिया है बहुट्ठियं इसमें दो पद हैं बहुका अर्थ होता है बहुत और
यि पदका अर्थ शास्त्रों में और कोषों में मिलता है-गुठली यह तो फलों में ही होती है, मांस में नहीं । इसलिये शुद्ध अर्थ हुआ कि बहुत गुठली वाले फल का गूदा । इस तरह अणिमिसं वा बहु कंटयं इस पद का अर्थ यह हुआ कि अनिमिष नाम वाले वृक्ष का फल तथा बहु कंटयं यानी बहुत कंटक वोले बबूल वृन्ताक आदि के शाकादि एवं अस्तिक, तिन्दुक, बिल्व, इतुखण्ड, शाल्मली वगैरह के पदार्थ देने वाले को प्रत्याख्यान कर देना कि मुझे ऐसा पदार्थ नहीं कल्पता है ।
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