Book Title: Jain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Author(s): Dharmanand Kaushambi
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 25
________________ ( २३ ) आती है कि गोचरी में जाने पर अगर कहीं बीजवाली चीज जैसे प्रांवले का मुरब्बा, नसवाली चीज जैसे सेवगा की सिंगा का शाक, लेने का अवसर आता है। तो साधु साध्वी साफ शब्दों में कहते हैं, कि बोज और नस निकालकर आप दे सकते हैं। कोई कोई ऐसा भी.अर्थ करते है कि मांस. रोहिणी और मत्स्यशकला ये दो ओषधियां है, देखिये क्रमशः भाव प्रकाश पृष्ट २०८ श्लोक १२५ पृष्ट १५४ श्लोक १४१ । अतः मंस शब्द से मांस रोहिणी और मच्छ शब्द से मत्स्यशकला लेना। यह बात व्याकरण से भी सिद्ध होती है, और लोक शास्त्र प्रचलित भी है कि "नामैकदेशे नाम मात्रस्य ग्रहणम् यथा सत्या सत्यभामा, भीमो भीमसेनवत् । अर्थात् नाम के एक देश ग्रहण से भी नामी (नाम वाले) का बोध होता है । जैसे सत्या कहने से सत्यभामा और भीम कहने से भीमसेन का ग्रहण होता है । इस बात को पाणिनिका व्याकरण भी सिद्ध करता है कि "विनापि प्रत्ययं पूर्वोत्तरपदयोर्लोपोवक्तव्यः" यथा-देव =,दत्त =,देवदत्त = अर्थात जैसे किसी का "देवदत्त" ऐसा नाम है। कोई उसको सिर्फ देव शब्द से आह्वोन करता है, अथवा दत्त शब्द से आह्वान करता है, किंवा देवदत्त सम्पूर्ण शब्द से आह्वान करता है परन्तु हर हालत में देवदत्त का हो बोध . होता है। ___ ऊपर लिखे हुए प्रमाण के अनुसार मंस शब्द से मांम रोहणी और मच्छ शब्द से मत्स्यशकला नामक वनस्पति का ग्रहण हुवा । ये दोनों औषधियां प्रायः रुप-रस-गंध में मांस और मत्स्य के स्वरुप में पाई जाती है। देखिये ! मांस रोहिणी और मत्स्य शकला के लिये भावप्रकाश पृष्ट २०८ और १५४ में । मांस रोहिण्यतिरुहा, वृत्ता चर्मकरी कृषा । प्रहार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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