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सिद्ध करने की चेष्टा की है और उस पर से श्वेतांबर जैन समाज में खलबली मची है, यह जैन सम्प्रदाय की एक प्रकार की भूल है । क्यों कि यह पुरानी प्रथा चली आ रही है कि व्यभिचारिणो स्त्री अपनी बराबरी में लाने के लिये सती और साध्वी स्त्रियों पर झूठा व्यभिचार का आरोप किया करती है । परन्तु सत्य और झूठ में दिन रात का अन्तर है । अगर कोई मांसाहारी अपनी अल्पज्ञता के कारण भगवान् के आगमों का रहस्य न समझकर अपनी समकक्षा में लाने के लिये जैन जनता को भ्रम में डाल रहा है, इससे जैन समाज मांसाहारी नहीं सिद्ध हो सकता । जैन समाज की पवित्रता और इनकी अहिंसा, दया, मद्यमांसादि का त्याग सारी दुनिया में प्रसिद्ध है, इस विषय में जैन धर्म की बराबरी करने वाला जगत में आज कोई भी नहीं है यह बात कहने में जरासी भी अत्युक्ति नहीं होगी । यह बात प्रमाण सिद्ध है कि बीज के बिना अङ्कुर कभी नहीं उत्पन्न हो सकता और जब बोज है तब सहकारी कोरण -कदम्ब मिलने पर अङ्कुर ये सिवाय रह नहीं सकता। आज भगवान् महावीर प्रभु को निर्वाण हुये २४७० वर्ष हो गये, उनके समय से आज तक भिन्न २ जैनाचार्यों के द्वारा हजारों ग्रंथ तैयार हुवे हैं । परन्तु किसी भी ग्रंथ में या आगमों की टीकाओं में मांसभक्षण का विधान नहीं मिलता क्यों कि इसका बोज ही नहीं है फिर अङ्कुर कहां से पैदा हो ?
भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध ये दोनों समकालीन माने जाते हैं । भगवान् बुद्ध ने अहिंसा का उपदेश दिया सही परंतु " पर निष्पादित" अर्थात् दूसरों से सिद्ध किये हुये मांस भक्षण के लिये उन्होंने अथवा उनके पश्चात् आचार्यों ने अपने अनुयायियों को छूट दी । अतः आज तक धारा प्रवाह से मांस भक्षण की रूढ़ि बौद्ध धर्म में चली आ रही है, जो अहिंसा की प्ररूपणा को लजाने वाली है । बात बहुत लिखनी है, परन्तु बुद्धिमान् को इशारा काफी
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