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বাগান বা অন্য মান-লেনিন্ম তা বিখ্যান
अरिहंत आदि किसी व्यक्ति विशेष के नाम नहीं है। प्रत्युत माध्यात्मिक गुणो के विकास से प्राप्त होने वाले पाच महान आध्यात्मिक मंगलमय पद है। यही कारण है कि ये पाचो महान आत्मा चपरमेष्ठी के नाम से संबोधित की जाती है।' परमेठी शब्द का अर्थ है-जो परमपद (नवोच्च अवस्या) मे रहते है। गंगार के अन्य साधारण वामनामन्न आत्मानो की अपेक्षा आध्यात्मिक विकासको उच्च स्वरूप को प्राप्त अरिहंत, मिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तया नाही 'पंचपरमेष्ठी' है।
अरिहंत-अरिहंत' गन्द का अर्थ है, अरि (धर्मगन) का हनन (नाश) करने वाला । इसका फलितार्य यह हुआ कि जो महान आत्मा आध्यात्मिक साधना के बल पर मन के विकारो से लड़ते है, वामनानों से संघर्ष करते है, राग-द्वप से टक्कर लेते है और अंत में उनको पूर्ण रूप से सदा के लिए नष्ट कर डालते हैं, वे अरिहंत कहलाते हैं। अरिहंत अवस्था को प्राप्त व्यक्ति "अरहा" (अर्हत) कहा जाता है। जनसूत्रों मे प्राय सभी जगह महावीर माटि तीर्थ करो के लिए महंत विशंपण का प्रयोग हुआ है। __ "अरिहंत" शब्द के स्थान मे कुछ प्राचीन याचार्यों ने अरहंत और अरुहन्त पाठान्तर भी स्वीकार किया है। उनके विभिन्न संस्कृत रूपान्तर होते है; जैसे-अर्हन्त, अरहोन्तर अरथान्त, अरहन्त और अल्हन्त। अर्ह-पूजायाम् धातु से बनने वाले अर्हन्त शब्द का अर्थ पूज्य है। वीतराग तीर्थकरदेव विश्व के कल्याणकारी धर्म के प्रवर्तक है, अत. असुर, सुर, नर आदि सभी के पूजनीय हैं । ___सिद्ध अवस्था प्राप्त करने से पूर्व आत्मा अर्हत-अवस्था को प्राप्त करता है। इस अवस्था को हम अद्ध सिद्ध-अवस्था भी कह सकते है। जब मात्मा आत्म-गुणो को नष्ट करने वाले कर्मो (४) के वन्धन से मुक्त हो जाता है, तव उसे अर्हत-अवस्था प्राप्त होती है। यह अवस्था उसे संसार मे
१. श्रमणणूत्र, पृ० ६ २. अंतगडदसाओ, १, १, पृ० ३. ३. सामायिक सूत्र पृ० २५९. ४. "क्षीणमोह अर्हत् के चार घाती कर्म (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय
व अन्तराय) एक साथ नष्ट हो जाते है।" स्थानांग, २२६.