Book Title: Jain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Author(s): Harindrabhushan Jain
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 239
________________ सप्तम अध्याय : ब्राह्मण तथा श्रमण-सस्कृति [ २२१ इन्द्रियाँ सशक्त रहे तभी तो जीवन मे आनन्द की प्राप्ति सम्भव हो सकती है। वौद्ध दृष्टिकोण से मानवजीवन का एकमात्र उद्देश्य दु ख-विनाश माना गया। दुख-विनाश बौद्ध के चार आर्यसत्यो मे से एक है। बुद्ध का कहना था कि संसार मे जन्म, मरण, बुढापा आदि दुख है, यह बात सत्य है। दुख का कारण तृष्णा (भोगो की अभिलाषा) है। तृष्णा के अत्यन्त निरोध से दुख का नाश हो जाता है। और दु.ख-नाश का उपाय आप्टागिक मार्ग है ।' वुद्ध ने अपने जीवनकाल मे अधिक से अधिक सुख या आनन्द की प्राप्ति की कल्पना नही की। उनका कहना था कि मानवजीवन के चरम लक्ष्य को पाने के लिए न तो काम-सुखो मे लिप्त होने की आवश्यकता है और नही शरीर को पीडा देने की । वुद्ध ने इन दोनो अतियो (पराकाष्ठाओ) के बीच का मार्ग जनता को समझाया। यही मार्ग मज्झिममार्ग (मध्यममार्ग) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।२ जैन-दृष्टिकोण से मानवजीवन का चरम लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना माना गया । इस निर्वाण-प्राप्ति का उपाय अहिसा है। मानव पूर्ण हिसक जीवन व्यतीत कर दु खो से आत्यन्तिक अभावरूप एवं अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तमुख एव अनन्तशक्तिरूप निर्वाण को प्राप्त कर सकता है।४ यद्यपि सयम तथा तप अहिसा के ही रूप है। किन्तु चरम लक्ष्य को प्राप्ति के लिए सयम तथा तप की भी आवश्यकता दिवताने के लिए अहिसा के साथ संयम तथा तप का भी निर्देश किया गया है। मन को स्थिर एवं शान्त रख कर शरीर से कप्ट सहन करना तप तथा इन्द्रियो का दमन कर छहकाय के जीवो की रक्षा करना सयम है। १. बौद्धदर्शन, “चार आर्यसत्य" पृ० २३ । २ बौद्ध सस्कृति, पृ० ७ । ३ सूत्रकृताग, १२, २, ३२ । ४. सूत्रकृताग १,११ । "अहिसा, सयम एवं तप रूप धर्म दशवकालिक १ १। ही उत्कृष्ट मगल है।"

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