Book Title: Jain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Author(s): Harindrabhushan Jain
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 266
________________ २४८ ] जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास आदर्श स्थापित-किया। फल यह हुआ कि अन्त मे भरत का भी लोभ और गर्व खत्म हुआ ।' एक समय था जव कि केवल क्षत्रियो मे ही नहीं, पर सभी वर्गों में मॉस खाने की प्रथा थी। प्रतिदिन के भोजन, सामाजिक उत्सव, धार्मिक अनुष्ठान के अवसरोपर पशु-पक्षियो का वध ऐसा ही प्रचलित और प्रतिष्ठित था; जैसा आज नारियलो और फलो का चढ़ना । उस युग मे भगवान् अरिष्टनेमि ने एक अलौकिक परम्पग स्थापित की। उन्होने अपने विवाह मे भोजन के लिए वध किए जाने वाले निर्दोप, पशु-पक्षियो की आर्तमूकवाणी से आर्द्र-हृदय हो कर यह निश्चय किया कि वे ऐसा विवाह न करेगे, जिसमे अनावश्यक और निर्दोष पशु-पक्षियो का वध होता हो । उस गंभीर निश्चय के साथ वे सवका आग्रह टाल कर बारात से शीघ्र वापिस लौट आए ओर द्वारिका से सीधे गिरनार पर्वत पर जा कर उन्होने तपस्या की। कीमार वय में राजपुत्री का त्याग और ध्यान तथा तपस्या का मार्ग अपना कर उन्होने उस चिरप्रचलित पशुवध की प्रथा पर आत्मदृष्टान्त द्वारा ऐसा कठोर प्रहार किया कि जिससे गुजरातभर मे और गुजरात से प्रभावित दूसरे प्रान्तो मे भी भी वह प्रथा नामशेप हो गई। । भगवान् पार्श्व तथा महावीर का जीवन जैन-परम्परा मे महान आदर्श समझा जाता रहा है । महावीर के जीवन मे पार्श्व के आत्मविकास का पूर्ण प्रतिविम्ब उपस्थित है। दीर्घतपस्वी महावीर ने अपने जीवन मे अहिसावृत्ति को अपना कर पूर्ण साधना का ऐसा परिचय दिया कि उनके समय मे तथा उनके बाद भी लोग ब्राह्मणधर्म मे से हिसा का नाम मिटा देने के लिए उन प्रयत्न करते रहे । परिणाम यह हुआ कि जिन यज्ञो मे पशुवध के विना पूर्णाहुति नही हो सकती थी। ऐसे यज्ञ भारतवर्ष मे नामशेष हो गए। ___महावीर की एक और अपनी विशेषता थी। उन्होने मनुष्य के भाग्य को ईश्वर और देवो के हाथो से निकाल कर स्वय मनुष्य के हाथ १. उत्तराध्ययन, २२ कल्पसूत्र "लाइफ आफ अरिष्टनेमि" । २ कल्पसूत्र, "लाइफ आफ ऋषभ" ।

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