Book Title: Jain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Author(s): Harindrabhushan Jain
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 222
________________ २०४ ] जैन-अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास मेरे कुटुम्बीजनो को मालामाल करता जाउँ, इस प्रकार अधिक जीने की आसक्ति करना । ४ मरणाससप्पओगे जल्दी मौत आजाय तो इस दुख से पिड छूट जाय, इस प्रकार की मरणाकाक्षा करना) ५ कामभोगासंसप्पओगे (मैं मानवीय या दिव्य कामभोगों को पालू या भोग लूँ; ऐसी आकाक्षा करना ।) संल्ल्लेखनाव्रती साधु पूर्वोक्त प्रकार से अशन पान का, १८ पापस्थानो का, चारो कपायो का पूर्ण त्याग कर वैराग्यमग्न एवं आत्मजागरण मे सावधान श्रमण, स्थविर श्रमणो के निकट ११ अगो का स्वाध्याय करता रहता है। अन्य श्रमण पूर्णरूप से उसको वैयावत्य करते है। एक दिन वह आत्मध्यान करते करते शान्तिपूर्वक मृत्यु का आलिंगन कर लेता है। अन्य स्थविर श्रमण यह जान कर कि साथी श्रमण ने मृत्यु को प्राप्त कर लिया है। उसके भ डोपकरण (वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि) ले कर अपने आचार्य या गुरु के निकट आते है और उन भंडोपकरणो को उनके समक्ष रख कर संल्लेखनाप्राप्त श्रमण की मृत्यु की सूचना देते है।' __ मरणोत्तर विधान-पूर्वोक्त प्रकार से समाधिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त श्रमण नियम से अनुत्तरविमान नामक स्वर्ग मे देवपद को प्राप्त करता है और अंत वह निर्वाणपद भी प्राप्त कर लेता है। अनुत्तरोपपातिकदशाग मे ऐसे अनेक श्रमणो का वर्णन है, जिन्होने सल्लेखनापूर्वक मृत्यु का आलिगन किया, अनुत्तरविमानो मे देवपद को प्राप्त किया और अन्त मे सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हुए। मेघकुमार श्रमण ने संल्लेखनापूर्वक मृत्यु को प्राप्त कर विजय महाविमान मे देवत्व प्राप्त किया और वहाँ पर ३३ सागरोपम की आयु भोग कर वहाँ से च्युत हो कर महाविदेह मे उत्पन्न हो कर सिद्धत्व प्राप्त किया।' जालिकुमार १६ वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन कर अन्त मे सल्लेखनापर्वक मृत्यु को प्राप्त हुए और उन्होने विजयविमान मे देवपद को प्राप्त किया। भ० महावीर ने कहा था कि-"श्रमण जालिकुमार महाविदेह क्षेत्र मे जन्म ले कर सिद्धत्व प्राप्त करेगा।"३ १ २. ३ नायाधम्मकहाओ, १, ३६, पृ० ४३-४६ । वही , १, ३७ पृ० ४६ । अनुत्तरोपपातिकदशाग, १ ।

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